स्टॉक एक्सचेंज में क्या कारोबार होता है?

शेयर बाजार क्या है? (Stock Market)
शेयर बाज़ार किसी लिस्टेड कंपनी में हिस्सेदारी खरीदने व बेचने की जगह है।
शेयर बाज़ार की तीन कड़ियां हैं : स्टॉक एक्सचेंज, ब्रोकर और निवेशक।
निवेशक सीधे शेयर खरीद या बेच नहीं सकते। उन्हें यह ब्रोकर के जरिए करना पड़ता है।
ब्रोकर, स्टॉक एक्सचेंज के सदस्य होते हैं और केवल वे ही उस स्टॉक एक्सचेंज में आपकी तरफ से किसी कंपनी के शेयर खरीद या बेच सकते हैं।
भारत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज हैं जहां किसी लिस्टेड कंपनी के शेयर ब्रोकर के माध्यम से खरीदे-बेचे जाते हैं। इस बाजार में किसी कंपनी को एंट्री तब मिलती है, जब वह आईपीओ लाती है। इसके जरिए कोई भी कंपनी अपनी हिस्सेदारी आम लोगों, वित्तीय संस्थाओं और म्यूचुअल फंड को बेचती है।
आईपीओ की लिस्टिंग के दिन कंपनियां आवेदन करने वाले लोगों व संस्थाओं को तय रेट पर शेयर आवंटित करती हैं। जब इन शेयर्स की स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग शुरू होती है, इसके भाव मांग-आपूर्ति के आधार पर बदलते रहते हैं। बदलते भाव की वजह से ही लोगों को फायदा या नुकसान होता है।
शेयर बाज़ार से जुड़ी ये बातें भी जानें-
बाज़ार का रेगुलेशन
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) शेयर बाजार में होने वाली हर गतिविधि पर नज़र रखता है। निवेशकों के हितों की रक्षा करना सेबी का मुख्य मकसद और कार्य है। शेयर बाजार में किसी भी कंपनी के शेयर की गलत तरीके से खरीद या बिक्री पर रोक लगाना भी सेबी के कार्यों में शामिल है।
सेंसेक्स
यह बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का बेंचमार्क संवेदी सूचकांक है जो बीएसई में लिस्टेड टॉप 30 कंपनियों के मार्केट कैपिटलाइजेशन (कंपनियों के कुल मार्केट वैल्यू) को प्रदर्शित करता है। अगर सेंसेक्स बढ़ता है तो इसका मतलब होता है कि बीएसई में लिस्टेड टॉप 30 कंपनियों ने अच्छा प्रदर्शन किया हैं। अगर सेंसेक्स गिरता है तो इसका मतलब है कि टॉप 30 कंपनियों में से अधिकांश कंपनियों का प्रदर्शन ख़राब रहा है।
निफ्टी
यह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का बेंचमार्क संवेदी सूचकांक है जो एनएसई में लिस्टेड टॉप 50 कंपनियों के मार्केट कैपिटलाइजेशन को प्रदर्शित करता है। अगर निफ्टी बढ़ता है तो इसका मतलब है कि लिस्टेड टॉप 50 कंपनियों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। निफ्टी के गिरने का मतलब है टॉप 50 कंपनियों में से अधिकांश का प्रदर्शन ख़राब रहा है।
वे 5 बड़ी वजहें जो साबित करती हैं कि शेयर बाजार के गिरने से हम सभी को चिंतित क्यों होना चाहिए।
वजह 1
ईपीएफ : क्योंकि हर नौकरीपेशा व्यक्ति इससे जुड़ा है
प्रत्येक नौकरीपेशा व्यक्ति (स्टॉक एक्सचेंज में क्या कारोबार होता है? चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी), ईपीएफ यानी कर्मचारी भविष्य निधि में योगदान देता है। नियमों के मुताबिक जिस कंपनी में 20 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, उसका पंजीकरण कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में होना अनिवार्य है। इस फंड को मैनेज करने वाला संगठन ईपीएफओ अपने एनुअल कॉर्पस/एक्यूमुलेशन का 15 फीसदी हिस्सा इक्विटी (शेयर बाजार) में एक्सचेंज ट्रेडेड फंड यानी ईटीएफ के जरिए निवेश करता है। इसलिए अगर शेयर बाजार गिरता है तो इसका असर ईपीएफओ के कॉर्पस (फंड) पर भी पड़ता है। जाहिर सी बात है अगर ईपीएफओ के पास ज्यादा कॉर्पस होगा तो वह अपने सदस्यों को ज्यादा सुविधाएं दे सकेगा।
कॉर्पस कम होने का सबसे ज्यादा असर ब्याज पर पड़ता है। ईपीएफओ ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए ब्याज दर को 8.65 फीसदी से घटाकर 8.50 फीसदी कर दिया है, जो पिछले सात सालों (2011-12 के बाद) में सबसे कम है।
देश में फिलहाल 6 करोड़ से ज्यादा एक्टिव ईपीएफ खाताधारक हैं। यानी शेयर बाज़ार से इतने परिवार सीधे प्रभावित होते हैं।
वजह 2
एनपीएस : क्योंकि करोड़ों लोगों की पेंशन इससे संबंधित है
नेशनल पेंशन सिस्टम यानी एनपीएस एक मार्केट लिंक्ड पेंशन कम इन्वेस्टमेंट स्कीम है, जिसे केन्द्र सरकार ने 1 जनवरी 2004 को लॉन्च किया था। इस तारीख को या इसके बाद जॉइन करने वाले सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस योजना में निवेश करना अनिवार्य है।
1 मई 2009 से यह योजना स्वैच्छिक आधार पर निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों सहित देश के सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध है। सितंबर 2019 तक इसके कुल एक करोड़ 28 लाख खाताधारक थे। इस योजना के तहत रिटायरमेंट के बाद खाताधारक अपने टोटल कॉर्पस का 60 फीसदी हिस्सा निकाल सकते हैं। बाकी रकम से रिटायरमेंट के बाद उन्हें पेंशन मिलती है।
चूंकि यह स्कीम शेयर बाजार से जुड़ी है, इसलिए खाताधारक के कॉर्पस का एक बड़ा हिस्सा शेयर बाजार में निवेश किया जाता है। सरकारी कर्मचारी अपने कॉर्पस का अधिकतम 50 फीसदी, जबकि निजी क्षेत्र के कर्मचारी 75 फीसदी हिस्सा शेयर बाजार में निवेश कर सकते हैं। इसलिए शेयर बाजार जितना ऊपर जाएगा, खाताधारकों के कॉर्पस पर रिटर्न उतना ज्यादा मिलेगा और रिटायरमेंट के बाद मैच्योरिटी अमाउंट भी ज्यादा होगा।
वजह 3
क्योंकि कारोबार के विस्तार से इसका सीधा संबंध है
शेयर बाज़ार से तकरीबन 7,500 कंपनियां जुड़ी हुई हैं। ये कंपनियां शेयर बाज़ार के जरिए फंड की उगाही करती हैं और उसी फंड से अपने कारोबार में विस्तार करती हैं। इन कंपनियों को शेयर बाज़ार में तेजी से जितना लाभ मिलता है, उनके लिए अपने कारोबार का विस्तार करने में उतनी आसानी होती है।
कारोबार के विस्तार करने का मतलब है अपना प्रोडक्शन बढ़ाना या अगर कोई सर्विस सेक्टर की कंपनी है तो वह अपनी सर्विस का एरिया बढ़ाती है। इससे कंपनी को काम के लिए नए लोगों की जरूरत पड़ती है और रोजगार बढ़ता है।
जब एक कंपनी अपना कारोबार बढ़ाती है तो उससे संबंधित दसियों अन्य क्षेत्रों के लिए भी रोजगार सृजित होते हैं। जब कंपनियां लाभ में होती हैं तो वे नई भर्तियां करने के साथ-साथ अपने मौजूदा कर्मचारियों के स्टॉक एक्सचेंज में क्या कारोबार होता है? वेतन और भत्तों में भी बेहतर वृद्धि करती हैं। वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी से लोगों की परचेसिंग पॉवर बढ़ती है। वे ज्यादा खरीदी करते हैं, ज्यादा यात्रा करते हैं, रेस्तरां या मनोरंजन में ज्यादा खर्च करते हैं। जाहिर है, इसका पूरा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। शेयर बाज़ार के गिरने पर अर्थव्यवस्था पर उल्टा असर पड़ता है।
वजह 4
क्योंकि इससे रुपए की कीमत पर भी फर्क पड़ता है
शेयर बाज़ार में गिरावट से रुपए का मूल्य भी गिरता है। इससे आयातित सामान की कीमतें बढ़ जाती हैं। हम महंगे आयातित सामान (जैसे स्मार्टफोन) को अवॉइड कर सकते हैं, लेकिन भारत में बनने वाले कई जरूरी सामान के लिए भी कच्चा माल व कलपुर्जे विदेशों से आते हैं। इनकी कीमत बढ़ने से हमारे यहां उत्पादित सामान जैसे दवाइयां, उर्वरक आदि के दाम बढ़ जाते हैं, जिससे आम लोगों से लेकर किसान तक सभी प्रभावित होते हैं।
वजह 5
क्योंकि डायरेक्ट रेवेन्यू भी मिलता है
जब बाजार अच्छा प्रदर्शन करता है तो उसमें निवेश करने वाले लोगों की संख्या और निवेश की मात्रा दोनों बढ़ती है। निवेश पर सरकार को सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (एसटीटी), कैपिटल गेन टैक्स वगैरह से भारी राजस्व मिलता है और सरकार इस राजस्व का इस्तेमाल तमाम लोककल्याणकारी कार्यों और बुनियादी ढांचे के निर्माण में करती है।
एनएसी और बीएसी (Nse and Bse) क्या होते है?
किसीको भी शेयर बाजार (Stock Market) में एक निवेशक या व्यापारी के रूप में, हितधारकों की पूरी समझ होनी चाहिए। मार्किट में प्रमुख संस्थाएं निवेशक / व्यापारी, स्टॉक ब्रोकर, क्लियरिंग कॉर्पोरेशन और एक्सचेंज होते हैं। एक ब्रोकर आपके और एक्सचेंज के बीच मध्यस्थ का काम करता है। जनता को शेयर जारी करके पैसा जुटाने वाली कंपनियां एक्सचेंजों में सूचीबद्ध हो जाती हैं। इन कंपनियाोंके तरफ से आईपीओ के माध्यम से, प्राथमिक बाजार में निवेशकों को शेयर जारी किए जाते हैं और जैसे ही आईपीओ खत्म हो जाता है, तो वो कंपनी एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो जाती है जो शेयरों में व्यापार करने का अवसर देती है।
उदाहरण के लिए यदि आप इन्फोसिस या मारुती सुजुकी के शेयर खरीदना चाहते हैं, तो आप इसे किसी भी समय एक्सचेंज से खरीद सकते हैं, क्योंकि आईपीओ केवल ३ दिनों की अवधि के लिए संचालित होते हैं। उस अवधि के बाद, कोई भी केवल द्वितीयक बाजार के माध्यम से शेयरों में व्यापार कर सकता है। यह वह जगह है जहां सभी शेयरों का कारोबार होता है और सेबी द्वारा शेयर बाजारों को विनियमित किया जाता है। किसी भी व्यापारी या निवेशक के लिए यह समझना आवश्यक है कि शेयर बाजार में एनएसी और बीएसी (Nse and Bse) क्या है और शेयर बाजार में प्रवेश करने से पहले एनएसी और बीएसी (Nse and Bse) के बीच का अंतर क्या है।
एनएसई और बीएसई भारत में प्रमुख राष्ट्रीय एक्सचेंज हैं। आप डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट या स्टॉकब्रोकर के साथ डीमैट या ट्रेडिंग अकाउंट खोलकर शेयरों में ट्रेडिंग कर सकते हैं।
कंपनियों को एक्सचेंजों में सूचीबद्ध क्यों किया जाता है?
Why do companies get listed on exchanges?
पारदर्शिता और स्वचालित व्यापार: (Transparency and automated trading)
ट्रेडिंग के संदर्भ में उच्च अंत प्रौद्योगिकी निवेशकों के लिए एक सहज अनुभव प्रदान करती है। एक्सचेंजों पर व्यापार की उच्च मात्रा का परिणाम निवेशक के लिए कम प्रभाव लागत होता है। स्वचालन से व्यवहार में पारदर्शिता आती है जिससे निवेशकों का विश्वास बढ़ता है।
विशाल पहुंच: (Huge Reach)
ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म को देश के किसी भी हिस्से से एक्सेस किया जा सकता है। एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने के बाद कंपनी को अधिक दृश्यता मिलती है और जनता को निवेश के उद्देश्य से इस प्लेटफॉर्म का उपयोग करने का समान अवसर मिलता है।
उच्च लेनदेन की गति: (High transaction speed)
ऑनलाइन ट्रेडिंग सिस्टम के आविष्कार से पहले व्यापार निष्पादन में भारी देरी होती थी और यह उच्च गति ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म स्टॉक एक्सचेंज में क्या कारोबार होता है? के साथ पूरी तरह से दूर किया गया है। उच्च गति के कारण लेन-देन की क्षमता कई गुना बढ़ गई है, जिसमें वे सही समय पर होते हैं।
एक्सचेंजों की भूमिका: (Role of exchanges:)
बाजार जहां प्रतिभूतियों का कारोबार होता है: (Market where securities are traded)
कोई भी निवेशक अपनी जरूरत के आधार पर सिक्योरिटीज खरीद या बेच सकता है। किसीको भी शेयरों में व्यापार करने के लिए के लिए कोई विशेष समयावधि नहीं स्टॉक एक्सचेंज में क्या कारोबार होता है? है। बाजार में तरलता अधिक है जो जमीन या सोने जैसे निवेश के रास्ते के मामले में नहीं है।
स्टॉक की कीमतों के मूल्यांकन के लिए जिम्मेदार: (Responsible for evaluation of stock prices)
मांग और आपूर्ति के आधार पर, स्टॉक की कीमत या तो बढ़ जाती है या घट जाती है। यदि कंपनी अच्छी प्रगति करती है, तो उसके शेयरों की मांग में वृद्धि होती है और बदले में इसकी कीमत बढ़ जाती है। जबकि अगर कंपनी अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है, तो इसके शेयरों की मांग कम हो जाती है और बदले में इसकी कीमत भी घट जाती है। स्टॉक की कीमत का मूल्यांकन एक्सचेंज में होता है।
सुरक्षा निवेशक: (Safeguards investors)
एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होने वाली कंपनियों में पूरी तरह से जांच और संतुलन होता है और इसलिए निवेशकों के पैसे सुरक्षित रहते हैं क्योंकि कई नियमों और मानदंडों का पालन करना होता है, जिनका कंपनियों को पालन करने की आवश्यकता होती है।
देश की अर्थव्यवस्था के लिए बैरोमीटर के रूप में कार्य: (Acts as barometer for a country’s economy)
शेयर बाजार (Stock Market) का स्वास्थ्य देश की आर्थिक स्थिति का एक संकेतक है। आमतौर पर एक मजबूत सरकार का परिणाम बाजारों के बेहतर प्रदर्शन और इसके विपरीत होता है।
“निवेश के रास्ते की व्यापक रेंज: (Broader range of investment avenues)
एक निवेशक या व्यापारी अपने वित्तीय लक्ष्यों के अनुसार निवेश कर सकते हैं। धन सृजन के लिए वित्तीय उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है।
आइए पहले NSE अर्थ और इसके बेंचमार्क इंडेक्स को समझें।
एनएसी और बीएसी क्या होते है? (What is Nse and Bse?)
एनएसी क्या होती है? (What is meaning of NSE?)
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की स्थापना 1992 में हुई थी और यह मुंबई में है। इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म को सबसे पहले NSE द्वारा पेश किया गया था।
निफ्टी ५० (Nifty 50) : निफ्टी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ५० का संक्षिप्त नाम है। यह एनएसई का बेंचमार्क इंडेक्स है, जिसमें ५० कम्पनिया हैं।
आइए अब हम BSE अर्थ और इसके बेंचमार्क इंडेक्स की ओर बढ़ते हैं।
बीएसी क्या होती है? (What is meaning of BSE?)
बीएसई (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) की स्थापना १८७५ में हुई थी और यह एशिया का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है।
सेंसेक्स (Sensex) बीएसई का बेंचमार्क इंडेक्स है और यह संवेदनशील और इंडेक्स शब्दों से लिया गया है। सेंसेक्स में ३० कम्पनिया शामिल हैं।
सेंसेक्स और निफ्टी भारतीय शेयर बाजार का चेहरा हैं क्योंकि ये विभिन्न राजनीतिक और आर्थिक कारकों के आधार पर ऊपर या नीचे जाते हैं।
बीएसई या एनएसई पर व्यापार क्यों करना चाहिए? (Why to trade on BSE or NSE?)
यद्यपि बीएसई पर सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या एनएसई की तुलना में बहुत अधिक है, जब ट्रेडिंग वॉल्यूम की बात आती है, तो एनएसई जीतता है। चूंकि एनएसई पर भारी मात्रा में कारोबार होता है, कीमत की खोज बहुत आसान हो जाती है। एनएसई और बीएसई में शेयरों की कीमत भिन्न होती है; इसलिए, इससे पहले कि आप स्टॉक खरीदना चाहें, दोनों एक्सचेंजों पर कीमत की तुलना करें और उसके अनुसार निर्णय लें। आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कुछ शेयर केवल बीएसई पर कारोबार करते हैं।
इंटरऑपरेबिलिटी क्या है? (What is interoperability?)
सेबी, मार्केट वॉच ने हाल ही में इंटरऑपरेबिलिटी की अवधारणा पेश की है। इस अवधारणा को समझने के लिए, आपको पहले यह पता होना चाहिए कि क्लियरिंग कॉर्पोरेशन क्या है। यह संगठन लेनदेन के साथ-साथ निपटान का भी ध्यान रखता है। अब तक, एनएसई पर निष्पादित व्यापार को केवल एनएसई क्लियरिंग के माध्यम से निपटाया जा सकता था , बीएसई पर व्यापार केवल आईसीसीएल के माध्यम से निपटाया जा सकता था।
मगर अभी इंटरऑपरेबिलिटी एक शेयर ब्रोकर को ट्रेड सेटलमेंट के लिए क्लियरिंग कॉर्पोरेशन में से किसी एक का उपयोग करने की अनुमति देता है, चाहे ट्रेडों को निष्पादित किया गया हो। इस कदम से सभी हितधारक लाभान्वित होते हैं क्योंकि यह स्टॉकब्रोकर के लिए अनुपालन लागत को कम करता है जो बदले में निवेशकों के लागत बोझ को कम करता है।
एनएसी और बीएसी के बीच अंतर (difference between Nse and Bse)
आपके पास एक बार जब एनएसी और बीएसी (Nse and Bse) के बीच अंतर के बारे में जानकारी होती है, तो स्पष्टता हो जाती है और शेयर बाजार में आपके निवेश का अनुभव आसान हो जाता है क्योंकि आप चुन सकते हैं कि आप कौनसा शेयर कहाँ और कब खरीदना या बेचना चाहते हैं।
जरुरी संपर्क (Links ) इन शेयर मार्किट – NSE & BSE INDIA: Important Links
Share Market Today, 16 Sept 2022: स्टॉक मार्केट धड़ाम, निवेशकों के डूबे 3 लाख करोड़ रुपये
Share Market News Today (आज का शेयर बाजार), 16 September 2022: एशियाई बाजारों में सियोल, तोक्यो, शंघाई और हांगकांग के बाजार नुकसान में कारोबार कर रहे थे। कल अमेरिकी बाजार भी नुकसान के साथ बंद हुए।
- BSE पर लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैप 2,83,37,474.58 करोड़ हो गया।
- कल डाउ जोंस 2 महीनों के निचले स्तर पर बंद हुआ था।
- ट्रेजरी यील्ड बढ़ने से अमेरिकी बाजारों में गिरावट आई।
Share Market News Today, 16 Sept 2022: पिछले कारोबारी सत्र के भारी नुकसान के साथ बंद होने के बाद आज हफ्ते के आखिरी कारोबारी दिन भी दोनों घरेलू बेंचमार्क सूचकांक लाल निशान पर खुले। बाजार के खुलने के बाद बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के प्रमुख इंडेक्स सेंसेक्स (Sensex) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के निफ्टी (Nifty) में गिरावट और भी बढ़ गई। इससे शुरुआती कारोबार में निवेशकों के तीन लाख करोड़ रुपये डूब गए।
सुबह 11:17 बजे 30 शेयरों पर आधारित बीएसई सेंसेक्स 604.68 अंक (1.01 फीसदी) टूटकर 59,329.33 अंक पर आ गया। वहीं, एनएसई निफ्टी 180.95 अंक यानी 1.01 फीसदी फिसलकर 17,696.45 के स्तर स्टॉक एक्सचेंज में क्या कारोबार होता है? पर कारोबार कर रहा था। शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स 250 अंक गिरकर और निफ्टी 17,800 के नीचे खुला था।
क्यों आई बाजार में गिरावट?
दरअसल ग्लोबल शेयर बाजारों में कमजोर रूख और विदेशी पूंजी की निकासी के चलते शुक्रवार को बाजार टूट गया। इसके साथ ही ग्लोबल इकोनॉमी में मंदी की आशंका और विदेशी पूंजी की निकासी से भी निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई है। शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने गुरुवार को शुद्ध रूप से 1,270.68 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे।
ग्लोबल मार्केट का ऐसा रहा हाल -
खबर लिखने के समय तक निफ्टी फार्मा के अलावा सभी सेक्टर् गिरावट पर कारोबार कर रहे थे। सबसे ज्यादा आईटी के शेयर लुढ़के। इसके अलावा बैंक, ऑटो, फाइनेंस सर्विस, एफएमसीजी, मीडिया, मेटल, रियल्टी, प्राइवेट बैंक और पीएसयू बैंक भी लाल निशान पर कारोबार कर रहे थे।
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Stock Market Trading: इन तरीकों से बढ़ा सकते हैं स्टॉक मार्केट से कमाई, जानिए कैसे घट जाता है वास्तविक मुनाफा
Stock Market Trading: स्टॉक मार्केट में कारोबार करते हैं तो सभी चार्जेज को आसानी से समझें ताकि मुनाफा बढ़ा सकें. मुनाफे के मामले में एनएसई और बीएसई पर ट्रेडिंग में भी फर्क है.
स्टॉक मार्केट में जब आप पैसे लगाते हैं तो ब्रोकरेज, एसटीटी (सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन फीस), एक्सचेंज ट्रांजैक्शन चार्ज, जीएसटी, सेबी चार्ज, स्टांप ड्यूटी जैसे टैक्स व चार्जेज चुकाने होते हैं और इन्हें काटकर ही शुद्ध मुनाफा या नुकसान आपको हासिल होता है. (Image- Pixabay)
Stock Market Trading: अगर आप स्टॉक मार्केट में कारोबार करते हैं और शेयरों की सक्रिय रूप से खरीद-बिक्री करते हैं तो इससे जुड़े चार्जेज के बारे में पहले से कैलकुलेशन कर लेना चाहिए. यह कैलकुलेशन इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे मुनाफा बढ़ाने में मदद मिलती है. इक्विटी में जब आप पैसे लगाते हैं तो यह इंट्रा-डे होता है या डिलीवरी या फ्यूचर या ऑप्शंस, इन सभी तरीकों में पैसे लगाने पर मुनाफा अलग-अलग हासिल होता है. स्टॉक मार्केट में जब आप पैसे लगाते हैं तो ब्रोकरेज, एसटीटी (सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन फीस), एक्सचेंज ट्रांजैक्शन चार्ज, जीएसटी, सेबी चार्ज, स्टांप ड्यूटी जैसे टैक्स व चार्जेज चुकाने होते हैं और इन्हें काटकर ही शुद्ध मुनाफा या नुकसान आपको हासिल होता है.
इन चार तरीकों से होती है ट्रेडिंग
- Intra-Day Equity: जब आप शेयर की खरीद-बिक्री यानी लांग या शॉर्ट पोजिशन सिर्फ एक ही दिन के लिए लेते हैं यानी कि आज ही खरीदकर बेच दिया तो यह इंट्रा-डे के तहत माना जाता है. इसमें इक्विटी की होल्डिंग नहीं मिलती है.
- Delivery Equity: इंट्रा-डे के विपरीत डिलीवरी ट्रेडिंग में आप जो शेयर खरीदते हैं, उसे डीमैट खाते में रखा जाता है और इसकी होल्डिंग कुछ समय के लिए मिलती है. इंट्रा-डे में चाहे घाटा हो या फायदा, पोजिशन को स्क्वॉयर ऑफ करना जरूरी होता है, जबकि डिलीवरी इक्विटी ट्रेडिंग में अपने हिसाब से जब चाहें किसी भी कारोबारी समय पर शेयरों की बिक्री कर सकते हैं.
- Future: यह खरीदार और विक्रेता के बीच एक वायदा है जिसके तहत एक खास दिन निश्चित प्राइस पर स्टॉक्स का लेन-देन होता है. सौदा हो जाने के बाद दोनों ही पार्टियों को इस सौदे को पूरा करना अनिवार्य है और कोई भी पक्ष मुकर नहीं सकता है.
- Options: ऑप्शंस के तहत किसी खास दिन निश्चित प्राइस पर लेन-देन के लिए एक सौदा होता है जिसमें कुछ प्रीमियम चुकाना होता है. ऑप्शंस के तहत कॉल और पुट दो विकल्प मिलते हैं. कॉल ऑप्शंस के तहत खरीदार को खरीदने का अधिकार मिलता है और पुट ऑप्शंस के तहत बेचने का.
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Crorepati Stock: 1 लाख के बन गए 30 लाख, 10 साल में 30 गुना बढ़ा पैसा, इस केमिकल शेयर ने बनाया करोड़पति
Paytm: निवेशकों के डूब चुके हैं 1.10 लाख करोड़, साबित हुआ देश का सबसे खराब आईपीओ, शेयर का क्या है फ्यूचर
मुनाफे पर ऐसे पड़ता है असर
ऊपर चार तरीकों के बारे में जानकारी दी गई जिससे आप शेयर मार्केट के जरिए पैसे कमाते हैं. अब नीचे देखते हैं कि आपको सभी तरीके से कितना मुनाफा हो रहा है-
- मान लेते हैं कि आप किसी कंपनी के 1 हजार रुपये के 400 शेयरों को खरीदकर इंट्रा-डे में ही 1100 रुपये में बेच देते हैं तो कुल टर्नओवर 8.40 लाख रुपये का हुआ. इस पर ब्रोकरेज, एसटीटी, एक्सचेंज ट्रांजैक्शन फीस, जीएसटी, सेबी शुल्क और स्टांप ड्यूटी मिलाकर करीब 202.24 रुपये टैक्स व चार्जेज के रूप में चुकाने होंगे. इस ट्रेडिंग में आपको 39795.76 रुपये का मुनाफा होगा.
- अगर आप 1 हजार रुपये के 400 शेयरों को खरीदकर डिलीवरी लेते हैं यानी कि उनकी बिक्री किसी और दिन 1100 रुपये के भाव पर करते हैं तो कुल टर्नओवर स्टॉक एक्सचेंज में क्या कारोबार होता है? 8.40 लाख रुपये का हुआ लेकिन टैक्सेज व चार्जेज के रूप में 935.04 रुपये चुकाने होंगे. इसमें 39064.96 रुपये का मुनाफा हुआ जो इंट्रा-डे ट्रेडिंग से कम है. हालांकि इंट्रा-डे में बहुत रिस्क है क्योंकि इसमें मुनाफा हो या नुकसान, पोजिशन को स्क्वॉयर ऑफ करना ही होगा.
- फ्यूचर के मामले में अगर आपने 400 शेयरों को 1000 रुपये में खरीदकर 1100 रुपये में बेचा है तो 8.4 लाख रुपये के टर्नओवर वाले इस ट्रांजैक्शन में 119.86 रुपये का टैक्स व चार्जेज चुकाने होंगे. इसमें 39880.14 रुपये का मुनाफा होगा.
- अगर ऑप्शंस के तहत 1 हजार रुपये के 400 शेयरों के लिए सौदा किया है जिसकी बिक्री 1100 रुपये के भाव पर होती है तो 8.4 लाख रुपये के टर्नओवर के इस सौदे में 805.38 रुपये टैक्स व चार्जेज के रूप में चुकाने होंगे. इसमें 39194.62 रुपये का मुनाफा होगा.
(यह कैलकुलेशन ब्रोकरेज फर्म Zerodha के कैलकुलेटर से किया गया है और इसमें एनएसई- नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडिंग का कैलकुलेशन है. सभी फर्मों के लिए ब्रोकरेज जैसे चार्जेज भिन्न होते हैं.)
F&O ट्रेडिंग में BSE पर NSE की तुलना में अधिक मुनाफा
Zerodha कैलकुलेटर के मुताबिक अगर आप एनएसई की बजाय बीएसई पर फ्यूचर एंड ऑप्शंस ट्रेडिंग करते हैं तो मुनाफा बढ़ सकता है. बीएसई पर F&O के लिए कोई एक्सचेंज ट्रांजैक्शन फीस नहीं लगता है और इससे जीएसटी भी कम हो जाता है. ध्यान रहे कि इंट्रा-डे इक्विटी और डिलीवरी इक्विटी में बीएसई पर एक्सचेंज ट्रांजैक्शन फीस एनएसई के बराबर ही चुकानी होती है.