तरलता निर्धारण

मुद्रा का प्रसार एवं मापन
मुद्रा का प्रसार एवं मापन :- किसी भी समय अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रा को मापने के लिए केन्द्रीय बैंक कुछ मापक का प्रयोग करते तरलता निर्धारण हैं। भारत के संदर्भ में रिजर्व बैंक द्वारा 1977 में एक वर्क फोर्स का गठन किया गया, जिसके द्वारा बाजार में किसी समय पर कितनी मुद्रा उपलब्ध है, मापने के लिए 4 मापक तय किये गए जिन्हें M1, M2, M3 एवं M4 नाम से जाना जाता है। मुद्रा के मापन को समझने से पहले अर्थव्यवस्था में तरलता शब्द को समझना आवश्यक है।
अर्थव्यवस्था में तरलता (Liquidity) – अर्थव्यवस्था में तरलता दो प्रकार से हो सकती है –
1. बाजार की तरलता – किसी भी समय अर्थव्यवस्था में उपलब्ध मुद्रा की कुल मात्रा को तरलता कहा जाता है। यदि तरलता अधिक है तो मुद्रास्फीति की स्थित उत्पन्न हो सकती हैं जबकि तरलता कम होने की स्थिति में अपस्फीति या मंदी आ सकती है।
2. मुद्रा की तरलता – मुद्रा की तरलता से संदर्भ मुद्रा के व्यय होने में लगने वाले समय से है। यदि समय कम लग रहा है तो वह मुद्रा अधिक तरल है। उदाहरण के लिए यदि एक व्यक्ति के पास नगद, क्रेडिट कार्ड एवं सोने के रूप में परिसंपत्तियां (मुद्रा) उपलब्ध हैं तो नगद सबसे अधिक तरल (क्योंकि नगद सबसे जल्दी और आसानी से खर्ची जा सकती है), क्रेडिट कार्ड कुछ कम तरल और सोने की तरलता सबसे कम मानी जाएगी।
मुद्रा का मापन
1. M1= CU (Coins and Currency) + DD (Demand and Deposit)
CU अर्थात लोगों के पास उपलब्ध नगद (नोट एवं सिक्के), DD अर्थात व्यावसायिक बैंकों के पास कुल निवल जमा एवं रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाये। निवल शब्द से बैंक के द्वारा रखी गयी लोगों की जमा का ही बोध होता है और इसलिए यह मुद्रा की पूर्ति में शामिल हैं। अंतर बैंक जमा, जो एक व्यावसायिक बैंक दूसरे व्यावसायिक बैंक में रखते हैं, को मुद्रा की पूर्ति के भाग के रूप में नहीं जाना जाता है।
2. M2= M1 + डाकघर बचत बैंकों की बचत जमांए
3. M3= M1 + बैंक की सावधि जमाये(FD)
4. M4= M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमा राशि (राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्रों को छोड़कर)
M1 से M4 की तरफ जाने पर मुद्रा की तरलता घटती है, परन्तु बाजार की तरलता बढ़ती जाती है।
M1>M2>M3>M4
संकुचित मुद्रा (Narrow Money)= M1 को संकुचित मुद्रा भी कहते है क्योंकि मात्रा में ये अन्य सभी से सबसे कम होती है, अर्थात इसमें पैसा सबसे कम होता है।
वृहद/बड़ी मुद्रा (Broad Money)= M3 को वृहद मुद्रा कहते है। सामान्यतः वृहद मुद्रा M4 को होना चाहिए परन्तु M1 से M4 तक जाते जाते उसे प्रयोग करना कठिन हो जाता है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि उसकी (M4) की तरलता इतनी कम है कि उसे प्रयोग नहीं किया जा सकता अतः M3 को ही वृहद मुद्रा कहा जाता है।
मुद्रा के प्रकार- मुद्रा को कई आधारों पर कई वर्गों में बाँटा जा सकता है। यहां पर हम मुद्रा की भौतिक स्थिति एवं मांग के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण बता रहें हैं-
- धात्विक – इसमें सभी सिक्के आते हैं।
- कागजी – सभी नोट आते हैं।
- प्लास्टिक – क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड आते हैं।
- बुरी मुद्रा – इसमें सभी कटे फटे नोट आते हैं।
- अच्छी मुद्रा – इसके अंतर्गत नये नोट आते हैं।
अच्छी और बुरी मुद्रा के सम्बन्ध में अर्थशास्त्री ग्रेसम्स ने एक नियम बताया था। जिसे ग्रेसम्स के नियम के नाम से जाना जाता है।
ग्रेसम्स का नियम- किसी भी अर्थव्यवस्था में बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर निकाल देती है तथा उसका स्थान ले लेती है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति के पास पुरानी तरलता निर्धारण कटी-फटी मुद्रा (बुरी मुद्रा) है तो वह उसे ही पहले प्रयोग में लाने का प्रयास करेगा न की नई मुद्रा (अच्छी मुद्रा) को, इस प्रकार बुरी मुद्रा, अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। - गर्म मुद्रा – जिस मुद्रा की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग अधिक हो उसे गर्म मुद्रा कहा जाता है। उदाहरण के लिए डॉलर।
- ठण्डी मुद्रा – जिस मुद्रा की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग कम हो उसे ठण्डी मुद्रा कहा जाता है।
विदेशी मुद्रा
हर देश की मुद्रा का अलग मूल्य होता है जोकि उस देश के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसके उत्पादन हिस्से के आधार पर तय होता है। सामान्य भाषा में जब किसी देश की मुद्रा का हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अधिक होगा तो उसका मूल्य भी अधिक होगा जैसे अमेरिका जिसकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 20% हिस्सेदारी है, जबकि भारत की कुल 2% है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा का मूल्य निर्धारण
1. बाजार द्वारा मुद्रा का मूल्य निर्धारण – अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में किसी देश की मुद्रा की मांग के आधार पर उसके मूल्य का निर्धारण किया जाता है। इसे प्रवाही विनिमय दर(Floating exchange rate) कहते हैं। प्रवाही इसलिए क्योंकि यह दर कम ज्यादा होते रहती है। किसी भी देश की मुद्रा का मूल्य निरपेक्ष(अकेले) नहीं होता वो हमेशा दूसरी मुद्रा के सापेक्ष होता है, अर्थात एक देश की मुद्रा की दूसरे देश के मुद्रा के साथ तुलना की जाती है इसे विनिमय दर(Exchange rate) कहते हैं। जैसे 1$=74रू0
2. सरकार द्वारा मुद्रा का मूल्य निर्धारण – कभी-कभी सरकारें भी जानबूझकर अपने देश की मुद्रा का मूल्य कम या ज्यादा कर देती है। ऐसा उस देश की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है –
The Liquidity Preference Theory of Interest was propounded by : / ब्याज की तरलता वरीयता सिद्धांत द्वारा प्रतिपादित किया गया था:
In macroeconomic theory, liquidity preference refers to the demand for money, considered as liquidity. The concept was first developed by John Maynard Keynes in his book The General Theory of Employment, Interest and Money (1936) to explain determination of the interest rate by the supply and demand for money. / मैक्रोइकॉनॉमिक सिद्धांत में, तरलता वरीयता पैसे की मांग को संदर्भित करती है, जिसे तरलता माना जाता है। इस अवधारणा को सबसे पहले जॉन मेनार्ड कीन्स ने अपनी पुस्तक द जनरल थ्योरी ऑफ एम्प्लॉयमेंट, इंटरेस्ट एंड मनी (1936) में आपूर्ति और पैसे की मांग द्वारा ब्याज दर के निर्धारण की व्याख्या करने के लिए विकसित किया था।
संवैधानिक तरलता अनुपात क्या है?
इसे सुनेंरोकेंसंवैधानिक तरलता अनुपात या एसएलआर (SLR) जमाओं का वह हिस्सा होता है जो बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों में रखना होता है. यानी वाणिज्यिक बैंकों को कुल जमाओं का इतना हिस्सा तो अनिवार्य रूप से बनाए रखना होता है।
चालू अनुपात क्या है समझाइए?
इसे सुनेंरोकेंकिसी संस्था में चल सम्पत्तियो और चल दायित्वों के पारस्परिक संबंध को चालु अनुपात कहा जाता है। २:1 का चालू अनूपात आदर्श माना जाता है।
चालू अनुपात क्या है इसकी गणना कैसे की जाती है?
- चालू अनुपात की गणना फर्म की अल्पकालीन वित्तीय स्थिति को देखने के लिए की जाती है तथा यह चालू सम्पत्तियों तथा चालू दायित्वों के मध्य तरलता निर्धारण सम्बंध को दर्शाता है।
- चालू अनुपात = चालू सम्पत्तियाँ (काल्पनिक सम्पत्तियों के अलावा) / चालू दायित्व
- चालू सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ होती है जो निम्नलिखित परिमापों को पूरा करती है –
चालू अनुपात का सूत्र क्या है?
इसे सुनेंरोकेंचालू अनुपात 2:1 का आदर्श माना जाता है। त्वरित अनुपात 1:1 को आदर्श माना जाता है। इस अनुपात की गणना करते समय रहतिया तथा देनदारों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए। इस अनुपात की गणना करते समय देनदारों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए।
शोधन क्षमता अनुपात क्या है?
इसे सुनेंरोकेंऋण शोधन क्षमता अनुपात- व्यवसाय की ऋण शोधन क्षमता का निर्धारण पणधारियों, विशेष रूप से बाहरी पणधारियों के प्रति इसकी संविदात्मक दायित्व (दायित्वों) के पूरा करने की क्षमता से होता है तथा ऋणशोधन क्षमता की स्थिति को मापने के लिए परिकलित अनुपात को ‘ऋण शोधन क्षमता अनुपात’ के नाम से जानते हैं।
शुद्ध लाभ अनुपात का क्या महत्व है?
इसे सुनेंरोकेंसकल लाभ की दर जितनी ऊँची होगी, बेचे गये माल का लागत मूल्य उतना ही कम होगा । रहे। जितना ऊँचा शुद्ध लाभ अनुपात होगा उतना ही यह व्यवसाय के लिए अच्छा होगा।
लेखांकन अनुपात विश्लेषण क्या है इसकी सीमाएं भी लिखिए?
इसे सुनेंरोकेंanupat vishleshan arth uddeshya mahatva simaye;अनुपात विश्लेषण से तात्पर्य वित्तीय विवरणों की मदों के बीच संबंध स्थापित करके व्यवसाय के वित्तीय विश्लेषण से होता है। इसके अंतर्गत निर्धारित उद्देश्य के अनुरूप वित्तीय विवरणों की किन्हीं दो या अधिक मदों के मध्य अनुपात ज्ञात करके एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है।
शुद्ध लाभ अनुपात का समीकरण क्या है?
इसे सुनेंरोकेंशुद्ध आय की गणना के लिए एक और समीकरण: शुद्ध बिक्री = सकल बिक्री – (ग्राहक छूट + रिटर्न + भत्ते) सकल लाभ = शुद्ध बिक्री – बेची गई वस्तुओं की लागत सकल लाभ प्रतिशत = [( शुद्ध बिक्री – बेची गई वस्तुओं की लागत ) / शुद्ध बिक्री ] × 100%।
संचालन लाभ और शुद्ध लाभ से आप क्या समझते हैं?
इसे सुनेंरोकेंसकल लाभ में से संचालन तथा गैर-संचालन दोनों के व्ययों को घटाने और गैर-संचालन आयों को जोड़ने पर जो राशि आती है, उसे शुद्ध लाभ या Net Profit कहा जाता है।
आंख का रोग, ब्लेफराइटिस
ब्लेफराइटिस होने पर पलकें लाल हो जाती हैं, उनमें सूजन जाती है, खुजली होने लगती है और आईलैश पर पपड़ी-सी पड़ जाती है। साथ ही आंखें सूख जाती हैं। आंखों के सूखने का प्रमुख कारण आईलिड के ऑयल ग्लैंड का काम करना होता है।
ब्लेफराइटिस होने के कई कारण हैं। इनके कारणों की पहचान इस संक्रमण के प्रकार एक्यूट या क्रॉनिक के आधार पर की जाती है। एक्यूट ब्लेफराइटिस अल्सरेटिव और नॉन अल्सरेटिव दो तरह के होते हैं।
अल्सरेटिव एक्यूट ब्लेफराइटिस सामान्य तौर पर बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण होता है। यह संक्रमण आमतौर पर स्टेफाइलोकोक्कल एवं मेराक्जेला बैक्टीरिया के कारण होता है। वहीं हर्पीस सिम्पलेक्स और वेरिसेल्ला जोस्टर वायरस का संक्रमण भी ब्लेफराइटिस का आसाधारण कारण है।
नॉन अल्सरेटिव एक्यूट ब्लेफराइटिस होने का सामान्य कारण एलर्जिक रिएक्शन होता है। इस तरह के रिएक्शन होने पर एटॉपिक ब्लेफरो डर्मेटाइटिस, सीजनल एलर्जिक ब्लेफरो कंजंक्टिवाइटिस और डर्मेटो ब्लेफरो कंजंक्टिवाइटिस नामक संक्रमण हो जाता है।
कैसेकरें पहचान- आंखोंकी जांच मरीज की हिस्ट्री पता की जाती है कि उसे कब, किस तरह के आंखों का संक्रमण हुआ था। उसके बाद आंखों की बाहर से जांच की जाती है। इसमें लिड स्ट्रक्चर, स्किन टेक्श्चर और आइलैश अपीयरेंस की जांच की जाती है। आईलिड के किनारे, आइलैशेज के बेस और मेल्बोमियन ग्लैंड ओपनिंग की माइक्रोस्कोप द्वारा जांच की जाती है। आंसू की क्वालिटी और मात्रा की भी जांच की जाती है।
लक्षण: ऐसामहसूस होना कि आंखों में कुछ चला गया है। आंखों में जलन होना। आंखों से पानी आना। आंखों या पलकों का लाल होना और उनका सूज जाना। आंखों का सूखना, स्पष्ट दिखाई देना, आईलैशेज पर पपड़ी जम जाना और उसका कड़ा हो जाना। पलकें झपकने पर आंखों में भारीपन महसूस होना। इस तरह के लक्षण प्रायः सुबह नींद से उठने के बाद ज्यादा परेशान करते हैं।
प्रकार: आईलिडके किनारों की दिखावट यानी अपीयरेंस के आधार पर ब्लेफराइटिस के प्रकार का निर्धारण किया जाता है। इंटीरियर ब्लेफराइटिस आईलिड के बाहरी किनारों पर जहां आईलैशेज जुड़े होते हैं, को प्रभावित करता है। पोस्टीरियर ब्लेफराइटिस आईलिड के ऑयल ग्लैंड, जो आंखों की तरलता बनाए रखने के लिए ऑयल का सीक्रिशन करती हैं, की कार्यप्रणाली में बाधा डालता है। इस संक्रमण से आंखों की तरलता खत्म हो जाती है और वे सूख जाती हैं। इस प्रकार का संक्रमण बैक्टीरिया के पनपने के लिए अनुकूल होता है। इसके अलावा मुंहासे और बालों में रूसी भी बैक्टीरिया के पनपने के लिए जिम्मेदार होती हैं। यह संभव है कि एकसाथ ही हमारी आंखें एंटीरियर और पोस्टीरियर दोनों प्रकार के ब्लेफराइटिस से संक्रमित हो जाएं। लेकिन दोनों प्रकार के संक्रमण की गंभीरता में फर्क हो सकता है।
उपचार: ब्लेफराइटिसके उपचार के लिए एंटी-माइक्रो बायल्स का इस्तेमाल किया जाता है और पलकों की साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखना जाता है। एरिथ्रोमाइसिन, एजिथ्रोमाइसिन, क्लोरैमफेनिकॉल और टेट्रासाइक्लिन आदि एंटीबायोटिक्स आई ड्रॉप के तौर पर आंखों में डाला जाता है। बिना डॉक्टर की सलाह के दवा नहीं लेनी चाहिए।
सही इलाज होने पर यह गंभीर रूप धारण कर लेता है। इसके कारण पलकों के किनारे असमान हो जाते हैं। ऐसा अल्सर के कारण घाव से होता है। इतना ही नहीं, इस बीमारी को नजरअंदाज करने से ट्राइकिएसिस भी हो सकता है। क्रॉनिक ब्लेफराइटिस के कारण आईलैशेज भी कम हो जाते हैं। ब्लेफराइटिस से बचने के लिए पलकों की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए और गंदे हाथों से आंखों को छूने या उसे रगड़ने से बचना चाहिए। इस बीमारी के उपचार में डॉक्टरी सलाह के साथ ही खुद के द्वारा आंखों की देखभाल बहुत महत्वपूर्ण होती है। जिन लोगों की पलकों में सूजन है, उन्हें उपचार के दौरान काॅस्मेटिक जैसे मस्कारा सहित आंखों के दूसरे मेकअप से बचना चाहिए।
तकरीबन 37 प्रतिशत लोग आंखों की परेशानी की वजह से डॉक्टर की सलाह लेते हैं। इनमें से 47 प्रतिशत लोगों को ब्लेफराइटिस की शिकायत होती है।
डॉ. महिपाल सचदेव चेयरमैन,सेंटर फार साइट,नई दिल्ली
ब्लेफराइटिस आंखों की एक बीमारी है, जिसमें पलकों में सूजन जाती है। पलकों में सूजन आने का कारण हमारी त्वचा पलकों के ऑयल ग्लैंड के ब्लॉकेज में पाए जाने वाले बैक्टीरिया और एलर्जी होती है। ब्लेफराइटिस को नज़रअंदाज किया तो आईलैशेज़ कम हो सकते हैं।
Intrest Meaning in Hindi Notes
उत्तर- ब्याज की दर के निर्धारण का आधुनिक सिद्धान्त अथवा नवकीन्सवादी सिद्धान्त प्रतिष्ठित सिद्धान्त तथा केन्सियन सिद्धान्त का समन्वय है। यह सिद्धान्त ब्याज दर निर्धारण की समस्या का अध्ययन मौद्रिक तथा अमौद्रिक (वास्तविक) तत्त्वों के सन्तुलन को सम्मिलित करके करता है। ब्याज के प्रतिष्ठित सिद्धान्त के अनुसार ब्याज की दर वहाँ निश्चित होती है जहाँ बचत तथा विनियोग की मात्रा बराबर तरलता निर्धारण होती है। इस प्रकार प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने ब्याज के निर्धारण में केवल अमौद्रिक (वास्तविक) तत्त्वों की ओर ध्यान दिया है। इसके विपरीत, कीन्स के अनुसार ब्याज की दर मुद्रा की माँग (तरलता पसन्दगी) तथा मुद्रा की पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। दूसरे शब्दों में, कीन्स ने केवल मौद्रिक तत्त्वों को ही महत्त्व दिया था। परन्तु ब्याज के आधुनिक सिद्धान्त में मौद्रिक तथा गैर-मौद्रिक तत्त्वों को संयोजित करके ब्याज के निर्धारण की व्याख्या प्रस्तुत की गई है, अतः आधुनिक सिद्धान्त ब्याज के प्रतिष्ठित सिद्धान्त और कीन्स के तरलता पसन्दगी सिद्धान्त दोनों का ही सम्मिश्रण है।
प्रतिष्ठित सिद्धान्त तथा कीन्स के तरलता पसन्दगी सिद्धान्त का समन्वय करने में हमें निम्नलिखित चार तत्त्व प्राप्त होते हैं-
(1) विनियोग माँग वक्र या विनियोग क्रिया (Investment Function), (2) बचत रेखा या बचत क्रिया (Saving Function),
(3) तरलता पसन्दगी रेखा या तरलता पसन्दगी क्रिया (Liquidity Preference Function), ),
(4) मुद्रा की मात्रा या पूर्ति।
इस प्रकार आधुनिक अर्थशास्त्री बचत, विनियोग, तरलता पसन्दगी और मुद्रा की पूर्ति को एक साथ संयोजित करते हैं।
इसके लिए उन्होंने दो अनुसूचियों IS व LM का उद्विकास किया। IS अनुसूची अर्थव्यवस्था के वास्तविक क्षेत्र या गैर-मौद्रिक क्षेत्र में बचत तथा विनियोग के कारकों के मध्य सन्तुलन को व्यक्त करती है तथा LM अनुसूची मौद्रिक क्षेत्र में मुद्रा की माँग व पूर्ति के मध्य सन्तुलन को व्यक्त करती है। जब हम IS अनुसूची और LM अनुसूची को रेखाचित्र-34 द्वारा व्यक्त करते हैं तो हमें IS व LM वक्र प्राप्त हो जाते हैं। (रेखाचित्र-34) जहाँ दोनों वक्र एक-दूसरे को काटते हैं, उसी बिन्दु पर हमें साम्य ब्याज की दर प्राप्त होती है, अर्थात् IS एवं LM वक्रों का कटाव बिन्दु ब्याज की सन्तुलन दर को व्यक्त करता है। इस ब्याज की दर पर-
(1) कुल बचत = कुल विनियोग (वास्तविक क्षेत्र),
(2) मुद्रा की कुल माँग मुद्रा की पूर्ति (मौद्रिक क्षेत्र), =
(3) वास्तविक क्षेत्र व मौद्रिक क्षेत्र दोनों ही सन्तुलनावस्था में होते हैं।
Intrest Meaning in Hindi Notes
IS वक्र (The IS Curve)-यह आय स्तरों तथा ब्याज-दरों के विभिन्न संयोगों पर बचत तथा विनियोग की समानता दिखाता है।
रेखाचित्र-34 में बचत वक्र (IS) यह प्रकट करता है कि आय के बढ़ने के साथ बचत बढ़ती है। दूसरी ओर विनियोग ब्याज-दर तथा आय के स्तर पर निर्भर करता है। ब्याज-दर का स्तर दिया होने पर विनियोग का स्तर आय के स्तर के साथ बढ़ता है। ब्याज-दर में कमी होने पर विनियोग वक्र ऊपर को (I2) और ब्याज-दर बढ़ने पर विनियोग वक्र नीचे को (I1) सरक जाता है। रेखाचित्र के निचले भाग में आय के प्रत्येक स्तर को विभिन्न ब्याज दरों पर चिह्नित करके IS वक्र खींचा गया है। IS वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर ढालू है क्योंकि ब्याज-दर के साथ-साथ विनियोजन में वृद्धि होती है और आय में भी।
IS वक्र ब्याज बेलोच (Interest Inelastic) भी हो सकता है, जिसका अर्थ यह है कि एक बिन्दु के बाद ब्याज-दर कम होने पर विनियोजन पर नगण्य प्रभाव होगा। रेखाचित्र-35 में ब्याज-दर OR1 में कमी होने पर आय में कोई परिवर्तन नहीं होगा।
LM वक्र (The LM Curve)-LM वक्र तरलता पसन्दगी अनुसूची तथा मुद्रा की पूर्ति अनुसूची को रेखाचित्र-36 (A) तथा (B) में व्युत्पन्न किया गया है। आय के विभिन्न स्तरों पर LIY1, L2Y2 तथा LIY5 तरलता पसन्दगी वक्रों का एक समूह खींचा गया है। मुद्रा पूर्ति के बेलोच वक्र MQ के साथ मिलकर हमें LM वक्र प्रदान करते हैं। LM वक्र में KST बिन्दु ब्याज आय स्तर को व्यक्त करता है, जहाँ मुद्रा की माँग (M) मुद्रा की पूर्ति (L) के बराबर होती है। मुद्रा की पूर्ति, तरलता पसन्दगी, आय स्तर तथा ब्याज स्तर व ब्याज-दर रेखाचित्र-36 (B) में दिखाए गए LM वक्र को निर्मित करते हैं। Intrest Meaning in Hindi Notes
LM वक्र दाएँ ऊपर की ओर ढालू होता है क्योंकि मुद्रा की मात्रा दी गई होने पर तरलता के लिए बढ़ रहा अधिमान अपने आपको ऊँची दर में अभिव्यक्त करता है। LM वक्र धीरे-धीरे पूर्णतया बेलोच हो जाता है। बिल्कुल बायीं ओर यह वक्र ब्याज-दर के साथ पूर्णतया लोचदार है।
ब्याज निर्धारण का आधुनिक सिद्धान्त (Modern Theory of Interest Determination)
ब्याज-दर का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है, जहाँ LM व IS वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। रेखाचित्र-37 में LM तथा IS वक्र E बिन्दु पर एक-दूसरे को काटते हैं और OY आय स्तर के अनुरूप OR ब्याज-दर निर्धारित होती है। ये आय स्तर तथा ब्याज दर वास्तविक (बचत विनियोग) बाजार (Real Market) तथा मुद्रा (माँग एवं पूर्ति) बाजार (Money Market) में साथ-साथ सन्तुलन स्थापित करते हैं।
आधुनिक सिद्धान्त की मान्यताएँ व आलोचना (Assumptions and Criticism of Modern Theory)
आधुनिक सिद्धान्त की मान्यताएँ व आलोचनाएँ निम्नवत् हैं-
(1) यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि ब्याज-दर पूर्णतया बेलोचदार है तो यह सिद्धान्त लागू नहीं होगा।
(2) यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है तरलता निर्धारण कि विनियोजन ब्याज सापेक्ष है। यदि विनियोग ब्याज सापेक्ष है तो अपेक्षित विनियोजन घटित नहीं होते।
(3) डॉन पेन्टिकन और मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार यह सिद्धान्त अत्यधिक कृत्रिम और सरलीकृत है।