पुट पर नयी प्रविष्टियां

यही है वह जगह
( लेख का पिछला भाग ) पत्रकारों में एक निपुणता होती है । उनकी भाषा चुस्त होती है । वे तर्क और भावना का पुट देकर विषयों पर रोशनी डालते हैं । लेकिन विज्ञापन सामग्री के रचनाकारों में भी तो ये सारी योग्यतायें होती हैं । कुछ विज्ञापनों को पढ़ते वक्त भ्रम हो जाता है कि हम साहित्य या दर्शन पढ़ रहे हैं । विज्ञापन सामग्री बनाने वाले का नाम नहीं छपता है । कुछ अरसे के बाद छप सकता है । क्यों नहीं ? राजनैतिक – सामाजिक मुद्दों पर समाचार – टिप्पणी लिखनेवालों की ज्यादा चर्चा होती है । उनकी प्रतिष्ठा बनती है । उस प्रतिष्ठा का बड़ा हिस्सा यह है कि वे एक दैत्याकार उद्योग के बुद्धिजीवी हैं । प्रतिष्ठा का दूसरा हिस्सा यह है कि कुछ पत्रकारों में लेखकवाला अंश भी होता है । यहाँ हम ’लेखक’ शब्द का इस्तेमाल बहुत संकुचित अर्थ में कर रहे हैं । लेखक वह है जो अपनी समग्र चेतना के बल पर अभिव्यक्ति करता है । लेखक की कसौटी पर पत्रकार की कोटि लेखक और लिपिक के बीच की है । जैसे किसी जाँच आयोग का प्रतिवेदन लिखनेवाला कर्मचारी , कनूनी बहस की अरजी लिखनेवाला वकील या पर्यटन गाइड लिखनेवाला भी लेखक ही होता है। आज के दिन आप नहीं कह सकते हैं कि एक अच्छा पत्रकार एक घटिया साहित्यकार से बेहतर है । दोनोंके प्रेरणा स्रोत अलग पुट पर नयी प्रविष्टियां हैं । यह हो सकता है कि कोई व्यक्ति साहित्य लिखना छोड़कर पत्रकार के रूप में अच्छा नाम कमाए । अभी सिर्फ भारतीय भाषाओं की पिछड़ी हुई पत्र – पत्रिकाओं में साहित्यिकों को पत्रकारिता के काम के लिए बुलाया जाता है।अत्याधुनिक पत्र-पत्रिकाओं में ऐसी परिपाटी खत्म हो गई है , क्योंकि साहित्यिकों में ऐसे संस्कार होते हैं , जो पत्रकारिता के लिए अयोग्यता के लक्षण हैं ।
अगर किसी बड़े समाचार-पत्र का सम्पादक दावा करता है कि उसके काम – काज में सेठजी ने कभी दखल नहीं दिया , तो उस सम्पादक को यह भी मालूम होना चाहिए कि आधुनिक सेठजी दखल नहीं दिया करते । ऐसे अनेक सेठजी होंगे , जिन्होंने कभी अपने बावरची , खजांची या दरजी के काम में दखल नहीं दिया हो । बड़े समाचार-पत्रों का सम्पादक चुने जाने की एक योग्यता यह है कि उसको अक्लमन्द होना चाहिए , ताकि उसके काम में मालिक को दखल देना न पड़े । जिस पत्रकार में लेखक वाला संस्कार पुट पर नयी प्रविष्टियां बचा है , उसके काम में दखल देना पड़ जाता है । इसीलिए मुम्बई के हमारे एक दोस्त को बहुत समय तक सम्पादक नहीं बनाया गया । दिल्ली में हमारे एक दूसरे दोस्त एक बड़े उद्योगपति के प्रमुख अखबार के पत्रकार हैं । उस अखबार में एक वरिष्ठ पत्रकार थे , जो अपने व्यक्तिगत जीवन में घोर साम्यवादी हैं । उनका लेखन उच्च कोटि का था , जिस पर अखबार को गर्व था । जब उनकी सेवा-निवृत्ति का समय आया , तो हमारे दोस्त ने चुटकी ली ,” कामरेड , आपका जो लम्बा जीवन बाकी है उसमें मैं आशा करता हूं कि आप हमारे उद्योगपति – मालिक के धन्धों के बारे में एक पुस्तक लिखेंगे ।” “क्यों ?” ” उनमें स्वतंत्र-लेखन शक्ति बच नहीं गई है , अगर उनमें ऐसी कोई शक्ति बची होगी तो मालिक की ओर से पत्र में नियमित कॉलम के माध्यम से उनको अच्छी रकम मिलती रहेगी । “
नई पीढ़ी के पत्रकारों के मामलों में यह जोखिम नहीं है । वे लेखक या विचारक के रूप में नहीं , शुरु से ही पत्रकार के रूप में प्रशिक्षित हो रहे हैं । यहाँ विचारों को दबाने के लिए अधिक भत्ता देना नहीं पड़ता है – सिर्फ इस काम को आकर्षक बनाने के लिए खूबसूरत वेतन – भत्ते का प्रबन्ध रहता है । यह वेतन – भत्ता विशिष्टजनों के लायक है । इस वेतन-भत्ते के लायक होने के लिए प्रतिबद्धताविहीन बुद्धिजीवी होने का प्रशिक्षण उन्हें मिलता रहता है । समाचार-पत्र उद्योग के प्रसार के लिए यह एक शर्त है कि समाज में प्रतिबद्धताविहीन लेखकों का एक बुद्धिजीवी वर्ग पैदा किया जाये । यानी शिक्षा और प्रशिक्षण की प्रक्रिया में ही उन्हें मालिक वर्ग की विचारदृष्टि में दीक्षित कर लिया जाए , ताकि किसी आदरणीय सम्पादक के बारे में यह कहना न पड़े कि वे अपने विचारों को दबाकर लिख रहे हैं । हम सीधे कह सकते हैं कि सम्पादक की विश्वदृष्टि और सेठजी की विश्वदृष्टि में एक अपूर्व मेल का संयोग है ।
पुट पर नयी प्रविष्टियां
Posted in यात्रा वर्णन, tagged travel on अक्टूबर 19, 2008| 9 Comments »
इस चिट्ठी पर मेरी गोवा यात्रा का वर्णन है।
(और ज्यादा…)
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छुट-पुट पर नयी प्रविष्टियां
This post is about memories of my mother. रिश्तों में सबसे पवित्र रिश्ता है मां का है। इस चिट्ठी में कुछ बाते अम्मां के बारे में। is chitthi mein Amma kee kuchh yaden hain
इस चिट्ठी में कर्ट फोनेगेट के एक उद्धरण, ज़ेन पेन्सिल चिट्ठे, और और मेरे प्रिय समय की चर्चा है। This post is about Kurt Vonegut, Zen pencil blog and nice time spent by me. hindi (devnagri) kee is chitthi mein, Kurt Vonegut, Zen pencil chitthe, aur mere priya samay kee charchaa hai. […]
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उन्मुक्त पर नयी प्रविष्टियां
इस चिट्ठी में, जयन्त पुट पर नयी प्रविष्टियां विष्णु नार्लीकर के हिन्दी एवं मातृ भाषा के बारे में विचारों की चर्चा है। इस विषय को, फिल्म 'हिन्दी मीडियम', बेहतरीन तरीके से उठाती है। नीचे इस फिल्म का टेलर हैचार नगरोंं की मेरी दुनिया - जयंत विष्णु नार्लीकरभूमिका।। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के किस्से।। फ़्रेड हॉयल - नार्लीकर के प्रेरणा स्रोत।। अरे काहे की पोलिश भाषा।। मूर्खता भ […]
इस चिट्ठी में रज्जू भैया के जीवन से जुड़ी कुछ घटनाओं की चर्चा है।२१ सितंबर १९९५ में गणेश जी की मूर्तियों के दूध पीने की घटना के बाद, कुछ पेपरों में छपी घटना का जिक्ररज्जू भैया, जैसा मैंने जानाभूमिका।। रज्जू भैया का परिवार।। रज्जू भैया की शिक्षा और संघ की तरफ झुकाव।। रज्जू भैया - बचपन की यादें।। सन्ट्रेल इंडिया लॉन टेनिस चैम्पियनशिप और टॉप स्पिन।। आपातकाल के […]
इस चिट्ठी में, जयन्त विष्णु नार्लीकर के जयोतिष के बारे में विचारों की चर्चा है।२००७ में रामनाथ गोयनका पुरस्कार के दौरान, जाते समय, जब जवाब सुनने के रोकने पर, वहीं फर्श पर जवाब सुनते और उसका जवाब देते हुऐ अब्दुल कलाम। चार नगरोंं की मेरी दुनिया - जयंत विष्णु नार्लीकरभूमिका।। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के किस्से।। फ़्रेड हॉयल - नार्लीकर के प्रेरणा स्रोत।। अरे का […]
इस चिट्ठी में, रज्जू भैया के फिल्म और गानों में रुचि के साथ आपातकाल के दौरान नाम और भेष बदलने की चर्चा है।आपातकाल के समय, रज्जू भैया अपने बदले रूप और छद्म नाम गौरव के रूप मेंरज्जू भैया, जैसा मैंने जानाभूमिका।। रज्जू भैया पुट पर नयी प्रविष्टियां का परिवार।। रज्जू भैया की शिक्षा और संघ की तरफ झुकाव।। रज्जू भैया - बचपन की यादें।। सन्ट्रेल इंडिया लॉन टेनिस चैम्पियनशिप और टॉप स्पिन।। आप […]
रिचर्ड फाइनमेन - बॉंगो बजाते हुऐ इस चिट्ठी में, सम्मेलनों में पूछे जाने वाले सवाल, उनकी प्रसांगिकता पर फाइनमेन के विचारों की चर्चा के साथ, न्यायलय में पूछे जाने वाले सवालों की चर्चा है। चार नगरोंं की मेरी दुनिया - जयंत विष्णु नार्लीकरभूमिका।। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के किस्से।। फ़्रेड हॉयल - नार्लीकर के प्रेरणा स्रोत।। अरे काहे की पोलिश भाषा।। मूर्खता भरी, […]
पुट पर नयी प्रविष्टियां
नयी दिल्ली, 11 मार्च (वार्ता) सर्बियाई राजधानी के स्टार्क एरिना में 18 से 20 मार्च तक होने वाली विश्व एथलेटिक्स इंडोर चैंपियनशिप बेलग्रेड 2022 के लिए भारत शॉट पुटर तजिंदरपाल सिंह तूर, लॉन्ग जम्पर एम श्रीशंकर और स्प्रिंटर दुती चंद को मैदान में उतारेगा।
एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष आदिल जे सुमारिवाला ने कहा कि एएफआई को खुशी है कि बेलग्रेड 2022 में उसका अच्छा प्रतिनिधित्व होगा, पुरुषों को उनकी रैंकिंग के आधार पर प्रविष्टियां मिल रही है जबकि दुती चंद को विश्व एथलेटिक्स द्वारा निमंत्रण दिया गया है। रोड टू बेलग्रेड 2022 सूची में श्रीशंकर 14वें और तजिंदरपाल सिंह तूर 18वें स्थान पर हैं।
उन्होंने कहा, "हमने देखा है कि दोनों पुट पर नयी प्रविष्टियां ने क्रमशः राष्ट्रीय ओपन जंप और राष्ट्रीय ओपन थ्रो प्रतियोगिताओं में अच्छा शुरुआती सीजन फॉर्म दिखाया है और उन्हें विश्व इंडोर चैंपियनशिप में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की उम्मीद है। विश्व एथलेटिक्स द्वारा दुती चंद को 60 मीटर स्पर्धा में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है.
दुती चंद पहली भारतीय एथलीट होंगी, जो अगले शुक्रवार को 60 मीटर मुकाबले में उतरेंगी। उसके बाद में श्रीशंकर लॉन्ग जंप फाइनल में प्रतियोगियों में शामिल होंगे, जबकि तजिंदरपाल सिंह तूर 19 मार्च की देर शाम शॉट पुट फाइनल में एक्शन में होंगे। तीन दिवसीय चैंपियनशिप में पुरुषों और महिलाओं के लिए 12-12 स्पर्धाएं होंगी।
गौरतलब है कि एएफआई के अध्यक्ष सुमारिवाला वर्ल्ड इंडोर चैंपियनशिप बेलग्रेड 2022 के लिए जूरी सदस्य हैं। भारतीय एथलीट 15 मार्च को नई दिल्ली से रवाना होंगे।
यही है वह जगह
( लेख का पिछला भाग ) पत्रकारों में एक निपुणता होती है । उनकी भाषा चुस्त होती है । वे तर्क और भावना का पुट देकर विषयों पर रोशनी डालते हैं । लेकिन विज्ञापन सामग्री के रचनाकारों में भी तो ये सारी योग्यतायें होती हैं । कुछ विज्ञापनों को पढ़ते वक्त भ्रम हो जाता है कि हम साहित्य या दर्शन पढ़ रहे हैं । विज्ञापन सामग्री बनाने वाले का नाम नहीं छपता है । कुछ अरसे के बाद छप सकता है । क्यों नहीं ? राजनैतिक – सामाजिक मुद्दों पर समाचार – टिप्पणी लिखनेवालों की ज्यादा चर्चा होती है । उनकी प्रतिष्ठा बनती है । उस प्रतिष्ठा का बड़ा हिस्सा यह है कि वे एक दैत्याकार उद्योग के बुद्धिजीवी हैं । प्रतिष्ठा का दूसरा हिस्सा यह है कि कुछ पत्रकारों में लेखकवाला अंश भी होता है । यहाँ हम ’लेखक’ शब्द का इस्तेमाल बहुत संकुचित अर्थ में कर रहे हैं । लेखक वह है जो अपनी समग्र चेतना के बल पर अभिव्यक्ति करता है । लेखक की कसौटी पर पत्रकार की कोटि लेखक और लिपिक के बीच की है । जैसे किसी जाँच आयोग का प्रतिवेदन लिखनेवाला कर्मचारी , कनूनी बहस की अरजी लिखनेवाला वकील या पर्यटन गाइड लिखनेवाला भी लेखक ही होता है। आज के दिन आप नहीं कह सकते हैं कि एक अच्छा पत्रकार एक घटिया साहित्यकार से बेहतर है । दोनोंके प्रेरणा स्रोत अलग हैं । यह हो सकता है कि कोई व्यक्ति साहित्य लिखना छोड़कर पत्रकार के रूप में अच्छा नाम कमाए । अभी सिर्फ भारतीय भाषाओं की पिछड़ी हुई पत्र – पत्रिकाओं में साहित्यिकों को पत्रकारिता के काम के लिए बुलाया जाता है।अत्याधुनिक पत्र-पत्रिकाओं में ऐसी परिपाटी खत्म हो गई है , क्योंकि साहित्यिकों में ऐसे संस्कार होते हैं , जो पत्रकारिता के लिए अयोग्यता के लक्षण हैं ।
अगर किसी बड़े समाचार-पत्र का सम्पादक दावा करता है कि उसके काम – काज में सेठजी ने कभी दखल नहीं दिया , तो उस सम्पादक को यह भी मालूम होना चाहिए कि आधुनिक सेठजी दखल नहीं दिया करते । ऐसे अनेक सेठजी होंगे , जिन्होंने कभी अपने बावरची , खजांची या दरजी के काम में दखल नहीं दिया हो । बड़े समाचार-पत्रों का सम्पादक चुने जाने की एक योग्यता यह है कि उसको अक्लमन्द होना चाहिए , ताकि उसके काम में मालिक को दखल देना न पड़े । जिस पत्रकार में लेखक वाला संस्कार बचा है , उसके काम में दखल देना पड़ जाता है । इसीलिए मुम्बई के हमारे एक दोस्त को बहुत समय तक सम्पादक नहीं बनाया गया । दिल्ली में हमारे एक दूसरे दोस्त एक बड़े उद्योगपति के प्रमुख अखबार के पत्रकार हैं । उस अखबार में एक वरिष्ठ पत्रकार थे , जो अपने व्यक्तिगत जीवन में घोर साम्यवादी हैं । उनका लेखन उच्च कोटि का था , जिस पर अखबार को गर्व था । जब उनकी सेवा-निवृत्ति का समय आया , तो हमारे दोस्त ने चुटकी ली ,” कामरेड , आपका जो लम्बा जीवन बाकी है उसमें मैं आशा करता हूं कि आप हमारे उद्योगपति – मालिक के धन्धों के बारे में एक पुस्तक लिखेंगे ।” “क्यों ?” ” उनमें स्वतंत्र-लेखन शक्ति बच नहीं गई है , अगर उनमें ऐसी कोई शक्ति बची होगी तो मालिक की ओर से पत्र में नियमित कॉलम के माध्यम से उनको अच्छी रकम मिलती रहेगी । “
नई पीढ़ी के पत्रकारों के मामलों में यह जोखिम नहीं है । वे लेखक या विचारक के रूप में नहीं , शुरु से ही पत्रकार के रूप में प्रशिक्षित हो रहे हैं । यहाँ विचारों को दबाने के लिए अधिक भत्ता देना नहीं पड़ता है – सिर्फ इस काम को आकर्षक बनाने के लिए खूबसूरत वेतन – भत्ते का प्रबन्ध रहता है । यह वेतन – भत्ता विशिष्टजनों के लायक है । इस वेतन-भत्ते के लायक होने के लिए प्रतिबद्धताविहीन बुद्धिजीवी होने का प्रशिक्षण उन्हें मिलता रहता है । समाचार-पत्र उद्योग के प्रसार के लिए यह एक शर्त है कि समाज में प्रतिबद्धताविहीन लेखकों का एक बुद्धिजीवी वर्ग पैदा किया जाये । यानी शिक्षा और प्रशिक्षण की प्रक्रिया में ही उन्हें मालिक वर्ग की विचारदृष्टि में दीक्षित कर लिया जाए , ताकि किसी आदरणीय सम्पादक के बारे में यह कहना न पड़े कि वे अपने विचारों को दबाकर लिख रहे हैं । हम सीधे कह सकते हैं कि सम्पादक की विश्वदृष्टि और सेठजी की विश्वदृष्टि में एक अपूर्व मेल का संयोग है ।