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Kharif Marketing season 2022-23: धान की MSP को ज्यादा नहीं बढ़ा पाई केंद्र सरकार, अब किसानों के समर्थन में आई 14 राज्य सरकारें
Kharif season 2022-23: केंद्र सरकार द्वारा खरीफ विपणन सीजन 2022-23 के तहत धान की MSP में अपेक्षित बढ़त ना हो पाने के कारण 14 राज्य सरकारें नाखुश नजर आईं.
By: ABP Live | Updated at : 13 Jun 2022 03:28 PM (IST)
खरीफ विपणन सीजन 2022-23 (फाइल तस्वीर)
Paddy Price Exception: भारत में धान की खेती मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, बिहार और असम आदि राज्यों में की समर्थन क्या है जाती है. यहां का धान दुनियाभर में निर्यात किया जाता है. यही कारण है कि केंद्र सरकार ने 8 जून को वर्ष 2022-23 के लिये धान की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में बढ़त की घोषणा की. लेकिन कुछ राज्य सरकारों के मुताबिक धान के MSP को अपेक्षित मूल्य जितना नहीं बढ़ाया गया. जानकारी के लिये बता दें कि फसल बिक्री के दौरान किसानों के हितों की रक्षा करने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य(MSP) निर्धारित की जाती है.
उम्मीदों पर खरी नहीं धान की एमएसपी
खरीफ विपणन सीजन 2022-23 के लिये फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में बदलाव को लेकर कुछ राज्य सरकारों ने अपेक्षित मूल्यों की रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी गई. खरीफ विपणन सीजन 2021-22 के लिये भी आंध्र प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों ने भी धान के अपेक्षित मूल्य केंद्र सरकार को भेजे गये थे. जिसके तहत देशभर में धान के किसान सीधे लाभान्वित हुये.
- इस मामले में कृषि लागत और मूल्य आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि धान उत्पादक सभी 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तरफ से धान की उत्पादन लागत को ध्यान में रखकर धान की एमएसपी को बढ़ाने का सुझाव भेजा था.
- इस रिपोर्ट में कुछ राज्यों ने धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य को 2,000 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 4,513 रुपये प्रति क्विंटल करने का प्रस्तवा भेजा गया.
- लेकिन केंद्र सरकार के निर्णय पर समान्य धान की कीमत 2,040 रुपये प्रति क्विंटल और ग्रेड ए किस्म के लिये 2,060 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित समर्थन क्या है की गई.
क्यों जरूरी है एमएसपी
धान के उत्पादन में भारत का नाम शीर्ष देशों की सूची में आता है, दूसरे देशों में भी बडे पैमाने पर चावल का निर्यात किया जाता है. ऐसे में दिनरात मेहनत करके धान उगाने वाले किसानों को उनकी फसल का वाजिब दाम दिलाना बेहद जरूरी हो जाता है. साथ ही, एमएसपी से खेती में खर्च होने वाली अनुमानित लागत भी कवर हो जाती है, और बिचौलियों अनावश्यक हस्तक्षेप भी खत्म हो जाता है. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुये 8 जून को केंद्रीय कैबिनेट बैठक ने खरीफ विपणन सीजन 2022-23 के लिये 14 फसलों की 17 किस्मों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करने का फैसला किया है.
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खरीफ विपणन सत्र 2022-23 की कुछ खास बातें
- केंद्र सरकार के इस फैसले पर आंध्र प्रदेश की राज्य सरकार ने धान समर्थन क्या है की एमएसपी में 2000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बढ़त का सुझाव दिया था.
- वहीं जम्मू-कश्मीर की सरकार ने न्यूनतन समर्थन मूल्य को कम करने का प्रस्ताव भेजा था.
- इस मामले में कृषि लागत और मूल्य आयोग की रिपोर्ट बताती है कि असम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ने खरीफ विपणन सीजन 2022-23 के लिए धान की एमएसपी में बदलाव के लिये कोई सुझाव नहीं भेजा.
फसलों पर एमएसपी बढ़ने से फायदा
केंद्र सरकार द्वारा खरीफ विपणन सीजन 2022-23 की एमएसपी जारी करने के बाद बाजरा, मूंगफली, मूंग, कपास और तिल के लिए किसानों को फायदा मिलने उम्मीद नजर आ रही है.
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Published at : 13 Jun 2022 03:28 PM (IST) Tags: Agriculture news Kharif season 2022-23 Kharif Marketing Season Paddy MSP MSP Increment हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Agriculture News in Hindi
न्यूनतम समर्थन मूल्य से 1830 रुपये प्रति क्विंटल तक कम हो गया चने का दाम, अब क्या करेंगे किसान?
Gram Price: जहां एक तरफ महाराष्ट्र के बाजारों में सरसों, कॉटन और सरसों समर्थन क्या है का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक चल रहा है, चने का अच्छा भाव मिलने के लिए किसान तरस रहे हैं. उन्हें एमएसपी से बहुत कम रेट पर चना बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
सरिता शर्मा | Edited By: ओम प्रकाश
Updated on: May 05, 2022 | 10:53 AM
फसल पैटर्न में बदलाव करके किसानों ने उत्पादन बढ़ाने की कोशिश की और यह सफल भी रहा. इस साल महाराष्ट्र में चने का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है. इसके बावजूद किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी नहीं हुई. क्योंकि उन्हें अच्छा भाव नहीं मिल रहा है. सोयाबीन, अरहर और चने की कीमतों (Gram Price) में पिछले आठ दिनों से गिरावट लगातार जारी है. जहां अधिक आवक होने पर प्रसंस्करण उद्योग में शामिल लोगों ने चने का स्टॉक कर लिया, वहीं अब चने की कीमत घटकर कई जगहों पर सिर्फ 4100 रुपये प्रति क्विंटल रह गई है. जबकि इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 5230 रुपये प्रति क्विंटल है. बीड जिले में आने वाली वाडवानी मंडी में तो एमएसपी से 1830 रुपये प्रति क्विंटल कम दाम पर किसान चना बेचने के लिए मजबूर हैं.
ऐसे में अब किसानों के पास सरकार द्वारा तय खरीदी केंद्र पर बेचने के अलावा कोई चारा नहीं है. गारंटी केंद्र और खुले बाजार के दाम में कहीं 1,130 रुपये प्रति क्विंटल का अंतर है तो कहीं 1800 रुपये का. पहले किसान ख़रीदी केंद्र के उलझन वाले नियमों के चलते खुले बाजार में उपज बेचना पसंद कर रहे थे. सरकार द्वारा तय खरीदी केंद्रों पर फसल बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना होगा. जिसमें लैंड रिकॉर्ड आदि देने की बाध्यता है.
आवक में हुई वृद्धि
महाराष्ट्र के बाजारों में चने की आवक बढ़ी है. क्योंकि इसका अभी सीजन चल रहा है. बाजार के जानकारों का कहना है कि दाम कम होने की एक वजह ये भी है. रबी सीजन के अंतिम चरण में सोयाबीन (Soybean) का भाव भी जमीन पर है. इसका भी किसान भंडारण करने पर जोर दे रहे हैं. किसान कीमत का अंदाजा लगाकर उपज ला रहे हैं. लेकिन जिनके पास पैसे की कमी है वो लोग मजबूरी में एमएसपी से सस्ते दाम पर बेचने के लिए मजबूर हैं. अब कीमत की तस्वीर बदल गई है सोयाबीन की कीमतों में पिछले डेढ़ महीने से गिरावट जारी समर्थन क्या है है. अब कीमतों में बढ़ोतरी की उम्मीदें धूमिल होती जा रही है.
किस मंडी में कितना है दाम
- बीड जिले में आने वाली माजलगाव गांव मंडी में 4 मई को चने का मॉडल प्राइस 4200 रुपये प्रति क्विंटल रहा.
- हिंगोली मार्केट में 4188 रुपये प्रति क्विंटल का मॉडल प्राइस रहा.
- बीड जिले की परली वैजनाथ मंडी में 4 मई को मॉडल प्राइस 4150 रुपये प्रति क्विंटल रहा.
- बीड जिले में आने वाली वाडवानी मंडी में तो चने का मॉडल प्राइस सिर्फ 3400 रुपये क्विंटल रहा.
खरीदी केंद्र और खुले बाजार के दाम में भारी अंतर
जहां इस समय कपास, सरसों और गेहूं (Wheat) का रेट कई खुले बाजारों में एमएसपी से अधिक चल रहा है वहीं चने का भाव काफी नीचे है. नाफेड के माध्यम से प्रदेश में चने की खरीद शुरू हो गई है. फिर भी किसानों को फायदा नहीं हो रहा है. महाराष्ट्र चने का अच्छा उत्पादक है. सीजन की शुरुआत से ही ख़रीदी केंद्र पर खुले बाजार के मुकाबले रेट ज्यादा है.इसके बावजूद किसानों ने खुले बाजार में चना बेचने पर जोर दिया था. लेकिन पहले कीमत में सिर्फ 300 रुपये का अंतर था, लेकिन अब यह अंतर 1100 रुपये से अधिक पहुंच गया है.
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लातूर मंडी में कितना है भाव
लातूर में सोयाबीन, चना और तुअर की आवक शुरू है. सीजन के आखिरी चरण में सोयाबीन की कीमतों में गिरावट जारी है. लातूर बाजार में चना 4100 रुपये प्रति क्विंटल है. तुअर की कीमत में भी गिरावट शुरू हो गई है. तुअर की गारंटीकृत कीमत 6,300 रुपये है जबकि खुले बाजार की दर 6,100 रुपये है व्यापारी अशोक अग्रवाल ने कहा कि कुल मिलाकर सभी कृषि चीज़ो के दाम गिरने लगे हैं और किसानों को सलाह दी जाती है कि वे बाजार का अध्ययन कर ही उपज बेचें. हो सके तो भंडारण करें.
MSP For 2021-22: केंद्र ने दी किसानों को बड़ी सौगात, फसलों की खरीद पर 85% तक बढ़ाई MSP, देखें लिस्ट
MSP for Various Kharif or Summer-Sown Crops: कृषि मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की बैठक में MSP की नई दरें घोषित करने का निर्णय हुआ है.
Updated: June 9, 2021 9:27 PM IST
MSP for Various Kharif or Summer-Sown Crops: केंद्र के तीन समर्थन क्या है कृषि बिलों के खिलाफ जारी किसान प्रदर्शनों के बीच केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Union Minister Narendra Singh Tomar) ने आज बुधवार को महत्वपूर्ण घोषणा की. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने धान, मक्का, बाजरा और सोयाबीन सहित 22 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ा दिया है. इसके मुताबिक 2021-22 के लिए घोषित नई दरों के बाद धान सामान्य (Paddy Normal) की खरीद का मूल्य प्रति क्विंटल 1940 रुपए हो गया है. इसमें 72 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोती हुई है. धान ग्रेड ए (Paddy Grade A) की खरीद भी 72 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी के साथ 1960 रुपए प्रति क्विंटल हो गई है.
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उन्होंने कहा कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की बैठक में ये निर्णय लिया है. कृषि मंत्री के मुताबिक सबसे अधिक बढ़ोतरी तिल (Sesame) की एमएसपी में हुई है. इसकी खरीद पर रिकॉर्ड 452 रुपए प्रति क्विंटल बढ़े हैं. नए दरों समर्थन क्या है के बाद तिल की खरीद अब 7307 रुपए प्रति क्विंटल में होगी. कृषि मंत्री ने कहा कि बाजरा जो 2020-21 में 2150 रुपए प्रति क्विंटल था, वो अब 2250 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है. इसके अलावा उड़द जैसी दालों की कीमतों में 300 रुपए की बढ़ोतरी के साथ 6,300 रुपए प्रति क्विंटल हो गई है.
यहां देखें सभी फसलों के लिए नई एमएसपी की दरें-
इसी बीच किसान आंदोलन का प्रमुख चेहरा भारतीय किसान यूनियन (BKU) के नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने कृषि और स्थानीय किसानों से जुड़े मुद्दों को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Bengal CM Mamata banerjee) से मुलाकात की. मुलाकात के बाद टिकैत ने कहा कि हमें मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि वह किसान आंदोलन का समर्थन जैसी करती थी वैसे ही करती रहेंगी. इसके लिए हम उनका धन्यवाद करते हैं. पश्चिम बंगाल (West Bengal) को मॉडल स्टेट के रूप में काम करना चाहिए और यहां के किसानों को अधिक लाभ मिले हम यही चाहते हैं.
इससे पहले प्रदर्शनकारी किसानों ने प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संबोधन का विरोध किया था. किसानों ने कहा कि पीएम ने अपने संदेश में कहीं भी तीनों कृषि कानूनों और देश में चल रहे किसान आंदोलन का जिक्र तक नहीं किया. एसकेएम के नेताओं ने कहा कि आंदोलन में अब 500 से ज्यादा किसान साथी शहीद हो चुके हैं. जहां एक तरफ देश का किसान बाजार में मिल रही कम कीमतों के कारण भारी नुकसान उठा रहा है, तो वहीं सरकार सिर्फ और सिर्फ अपने अहंकार के कारण इस आंदोलन को इतना लंबा खींच रही है.
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एलन विल्स हमारे सदस्यों में से एक है; वह आरए जागरूकता सप्ताह के दौरान हमारे साथ अपनी कहानी साझा करना चाहता था और हमें जागरूकता बढ़ाने और लोगों को दिखाने के लिए समर्थन क्या यह #behindthesmile
एलन 10 साल पहले आरए के साथ का निदान किया गया था; यह उसकी कहानी है ।
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आप जानते हैं दर्द के साथ रहना 24/7 आसान नहीं है-साधारण चीजें करना मुझे मजा आता है, जैसे मेरी सौतेली बेटी को स्कूल ले जाना दर्द और थकान की वजह से मुश्किल होता है । जिन लोगों के पास आरए नहीं है, वे समझ नहीं पाते हैं कि जीवन दर्द की तरह है, बस आ रहा है; यह कभी नहीं रुकता है । लेकिन हम क्या कहते हैं जब उनसे पूछा गया कि ' आप कैसे हैं ', हम बस कहते हैं 'मैं ठीक हूं ' जब वास्तव में, हम नहीं कर रहे हैं । मैं भी अवसाद के साथ पीड़ित है और शायद अधिक से अधिक मैं चाहिए पीते हैं । मैं कुछ 10 साल के लिए अब काम नहीं किया है, और मैं बैसाखी पर हूं, यह कठिन हो रही है और कठिन कुछ करने के लिए हर दिन लगता है । मैं हर दिन के बारे में 5 मील की दूरी पर चलना इस्तेमाल किया क्योंकि मैं बाहर निकलना पसंद है । मैं अब ऐसा नहीं कर सकता । सर्दी सबसे खराब समय है; मैं सिर्फ घर के अंदर बैठता हूं । मैं समुद्र से रहने वाले प्यार करता हूं, लेकिन यह सर्दियों में ठंडा है, लेकिन, गर्मियों कोने के आसपास है; समय अपने आप को धूल से दूर, पुराने 6IT स्कूटर पर बैटरी चार्ज और बाहर निकलना और के बारे में ।
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लघु वन उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का परिचय (MFP)
वन आदिवासियों के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का एक जटिल तत्व है, और यह अनुमान है कि भारत में, लगभग 300 मिलियन आदिवासी और अन्य स्थानीय लोग अपने निर्वाह और आजीविका के लिए वनों पर निर्भर हैं। भारत में 3,000 पौधों की प्रजातियों की अनुमानित विविधता है, जिसमें से एनटीएफपी, जिसे आमतौर पर माइनर फॉरेस्ट प्रोडक्शंस (एमएफपी) के रूप में जाना जाता है।
आदिवासियों की अधिकांश आबादी वन क्षेत्रों में रहती है और माइनर फॉरेस्ट प्रोड्यूस पर अपनी आजीविका और आय सृजन के लिए काफी हद तक निर्भर करती है जो आदिवासी समुदाय के लिए निर्वाह और नकदी आय का एक बड़ा स्रोत बनती है। लघु वनोपज भी आदिवासियों के लिए एक प्रमुख भाग भोजन, फल, दवाएं और अन्य उपभोग की वस्तुएं बनाते हैं।
वन निवासियों को PESA (पंचायत विस्तार से अनुसूचित क्षेत्र) अधिनियम, 1996, और वन अधिकार अधिनियम, 2006 के माध्यम से MFP के स्वामित्व और शासन के साथ कानूनी रूप से सशक्त बनाया गया है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत, "मामूली वन उपज" में बांस, ब्रश की लकड़ी, स्टंप, बेंत, टसर, कोकून, शहद, मोम, लाख, तेंदू या केंदू के पत्तों, औषधीय पौधों और सहित पौधों की उत्पत्ति के सभी गैर-लकड़ी वन उपज शामिल हैं। जड़ी बूटियों, जड़ों, कंद और पसंद है।
अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, "मामूली वन उपज के पारंपरिक स्वामित्व, उपयोग, उपयोग और निपटान का अधिकार देता है, जिसे पारंपरिक रूप से गांव की सीमाओं के भीतर या बाहर एकत्र किया गया है"। इस अधिनियम को नागरिकों के हाशिए पर पड़े सामाजिक-आर्थिक वर्ग की सुरक्षा के लिए और जीवन और आजीविका के अधिकार के साथ पर्यावरण के अधिकार को संतुलित करने के लिए लागू किया गया था। हालांकि, कई समस्याएं लाजिमी हैं। जंगलों पर निर्भर आदिवासी और अन्य स्थानीय लोग अभी भी वंचित और गरीब हैं और निष्पक्ष रिटर्न से वंचित हैं।
वन निवास अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के लिए उचित रिटर्न सुनिश्चित करने के लिए और समस्याओं के समाधान के रूप में वे इस तरह के उत्पादन की खराब प्रकृति, धारण क्षमता की कमी, विपणन बुनियादी ढांचे की कमी, मध्यम पुरुषों द्वारा शोषण, और कम सरकारी हस्तक्षेप के रूप में सामना कर रहे थे। आवश्यक समय पर, योजना, "न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के माध्यम से मामूली वन उपज (MFP) के विपणन के लिए तंत्र और MFP के लिए मूल्य श्रृंखला का विकास" जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा MFP के लिए सामाजिक सुरक्षा के उपाय के रूप में तैयार किया गया था। 2013 में लागू किया गया था।
एमएफपी के लिए एमएसपी की योजना और मूल्य श्रृंखला के विकास की शुरुआत जनजातीय मामलों के मंत्रालय (एमओटीए) द्वारा वित्त वर्ष 2013-14 में एमएफपी इकट्ठा करने वालों को उचित मूल्य प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी, जो उनकी आय का स्तर बढ़ाते हैं और एमएफपी की स्थायी कटाई सुनिश्चित करते हैं। एमएफपी योजना के लिए एमएसपी का उद्देश्य संसाधन आधार की स्थिरता सुनिश्चित करते हुए आदिवासी इकट्ठा करने वालों, प्राथमिक प्रसंस्करण, भंडारण, परिवहन आदि के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए एक रूपरेखा स्थापित करना है।
जनजातीय मामलों के मंत्रालय और ट्राइफेड ने राज्य सरकारों को एमएफपी योजना के लिए एमएसपी के तहत खरीद करने की सलाह दी है। मंत्रालय ने लगभग सभी एमएफपी आइटम पत्र संख्या के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य भी संशोधित किए हैं। एफ.एन.ओ .१ ९ / १9 / २०१9-आजीविका दिनांक ०१ मई २०१० को जनजातीय एकत्रितकर्ताओं के हाथों में बढ़ी हुई आय प्रदान करने के उद्देश्य से। इसके अलावा, एमएफपी योजना के लिए एमएसपी की सूची में अतिरिक्त 23 एमएफपी वस्तुओं को भी शामिल किया गया है ताकि मंत्रालय के पत्र संख्या के अनुसार योजना के दायरे और कवरेज का विस्तार किया जा सके। F.No.19 / 17/2018-आजीविका दिनांक 26 मई 2020।
राज्यों ने हाट बाज़ारों में प्राथमिक खरीद एजेंसियों के माध्यम से और जनजातीय इकट्ठाकर्ताओं के माध्यम से इस योजना के तहत उपलब्ध मौजूदा निधियों से एमएफपी की खरीद शुरू की है।