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निजी निवेश

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'निजी निवेश'

एचडीएफसी (HDFC) की निजी इक्विटी इकाई एचडीएफसी कैपिटल ने किफायती आवास क्षेत्र में प्रौद्योगिकी नवोन्मेष को बढ़ावा देने के लिये पहल की है. इसके तहत नवोन्मेष को लेकर प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जा रहा है.

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि केंद्र सरकार देश में निवेश लाने के लिए हर कदम उठाने को तैयार है. देश के निजी उद्योग को प्रोत्साहित करने और समर्थन देने के लिए पीएलआई जैसी योजनाएं शुरू की गईं और कर दरों में भी कटौती की गई है. उन्होंने कहा कि नीतियों का उन्नयन किया जाता है.

विश्व बैंक ( World Bank) ने प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना और निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए कुल 1.75 अरब अमेरिकी डॉलर (US Dollar) (लगभग 13,834.54 करोड़ रुपये) के कर्ज को मंजूरी दी है.

LIC IPO Opens Today : प्रमुख सरकारी कंपनी जीवन बीमा निगम (Life Insurance of India) का पब्लिक इशू या IPO (Initial Public Offering या आरंभिक सार्वजनिक निर्गम) आखिरकार आज सब्सक्रिप्शन के लिए खुल गया है. LIC की शुरुआत 1956 में हुई थी. तब इसे 245 निजी लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों का विलय और निजीकरण करके बनाया गया था. उस वक्त कंपनी ने 5 करोड़ के प्रारंभिक निजी निवेश पूंजी पर काम शुरू किया था. बीमा कंपनी के आईपीओ को एंकर निवेशकों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली है. आज यह आईपीओ संस्थागत और खुदरा यानी रिटेल निवेशकों के सब्सक्रिप्शन के लिए खुला है. बता दें कि लगभग 21,000 करोड़ के वैल्यू का यह अबतक का देश का सबसे बड़ा आईपीओ है. सरकार एलआईसी में अपने 3.5 फीसदी शेयरों की बिक्री आईपीओ के जरिये कर रही है, इससे 20,557 करोड़ रुपये जुटाए जाने की उम्मीद है. यह ऐतिहासिक आईपीओ आज यानी खुदरा व संस्थागत निवेशकों के लिए खुला है, अब इसका सब्सक्रिप्शन 9 मई को बंद होगा.

IMF ने अपनी वर्ल्ड इकोनॉमिक रिपोर्ट (World Economic Report) जारी की है, जिसमें वैश्विक स्तर पर अनुमान जारी किए हैं. भारत की विकास दर की संभावनाओं पर आईएमएफ ने कहा है कि कच्चे तेल के ऊंचे दामों से निजी उपभोग और निवेश पर काफी असर पड़ेगा.

Russia के राष्ट्रपति Vladimir Putin को अक्सर दुनिया का सबसे अमीर (Rich) आदमी माना जाता है. एक निवेश कंपनी ने 2017 में दावा किया था कि पुतिन की निजी संपत्ति करीब 200 अरब डॉलर है.रूसी राष्ट्रपति की जीवनशैली के कारण सम्पत्ति के बारे में दावे लगातार चर्चा में रहते हैं.

विश्व बैंक की की ताज़ा रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि अगले वर्ष 2022-23 में भारत की जीडीपी विकास दर 8.7% रहेगी और उसके बाद के वित्त वर्ष 2023-24 में जीडीपी विकास दर घट कर 6.8% आ जाएगी. यह उसके पिछले अनुमान से अधिक है. निजी निवेश के माहौल में सुधार, उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना और ढांचागत निवेश में वृद्धि इस सुधार की वजह है

संजीव मेहता ने लंबे समय तक उच्च आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने के लिए निजी निवेश को प्रोत्साहन देने वाले सतत प्रयासों की जरूरत पर भी बल दिया. उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष के अंत में भारतीय अर्थव्यवस्था तीन लाख करोड़ डॉलर की हो जाएगी.

Cryptocurrency Bill को लेकर सरकार ने लोकसभा की वेबसाइट पर नोटिफ‍िकेशन में कहा है कि बिल भारत में सभी निजी क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित करने का प्रयास कर रहा है, लेकिन कुछ अपवादों को क्रिप्टोकरेंसी और इसके उपयोग की अंतर्निहित तकनीक को बढ़ावा देने की अनुमति देगा.

शिकायतकर्ता से निवेश की राशि लेने के बाद आरोपियों ने न तो कार्यक्रम आयोजित किया और न ही शिकायतकर्ता की मूल रकम वापस की. इन्‍होंने इस राशि को अपने निजी उपयोग के लिए अपने बैंक खातों में जमा कर दिया और शिकायतकर्ता को धोखा दिया. पुलिस ने केस दर्ज कर दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

निजी निवेश के क्षेत्र में दिखती नई आशा

निजी निवेश देश में आर्थिक और सांस्कृतिक गतिशीलता का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। सन 2011 के बाद के परिदृश्य को देखें तो इस कहानी का एक हिस्सा बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में निजी निवेश में भारी कमी और इस क्षेत्र में सरकार की बढ़ी हुई भूमिका का है। हाल के महीनों में इसमें कुछ सुधार देखने को मिला है।

अधिकांश जीडीपी और रोजगार निजी क्षेत्र से ही उत्पादित होते हैं। किसी देश की महानता का संबंध वहां लोगों को मिली आजादी, उनकी ऊर्जा, रचनात्मकता और उनमें मौजूद आशावाद से होता है। जब निजी फर्म तयशुदा परिसंपत्ति तैयार करती हैं तो इससे दीर्घावधि का उत्पादन और मेहनताने के भुगतान की एक दीर्घकालिक धारा तैयार होती है। कोई भी निवेश परियोजना बहुत कम समय के लिए भूमिका निभाती है और इस दौरान दीर्घकालिक उत्पादन और मेहनताने का एक सतत सिलसिला शुरू होता है।

सन 1991 से 2011 के बीच भारत ने मजबूत वृद्धि हासिल की। उसके बाद निजी निवेश लडख़ड़ा गया। निजी निवेश के आकलन का एक तरीका है विशुद्ध तयशुदा परिसंपत्तियों में सालाना वृद्धि जो गैर वित्तीय कंपनियों की सालाना बैलेंस शीट में नजर आती है। एक अन्य तरीका है सीएमआईई कैपेक्स डेटाबेस के जरिये नजर डालना जो निवेश परियोजनाओं का निजी निवेश ब्योरा रखता है। 2021 में रुपये में किए गए आकलन में निजी क्रियान्वयाधीन परियोजनाओं के शेयरों का अधिकतम मूल्य 2011-12 में 90 लाख करोड़ रुपये था। बाद के वर्षों में वह घटकर 50 लाख करोड़ रुपये रह गया। औसतन देखा जाए तो यह 5 लाख करोड़ रुपये या करीब 70 अरब डॉलर प्रति वर्ष की गिरावट है।

यह बीते दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है। हर देश में राज्य का निर्माण ही निजी व्यक्तियों की आजादी और आशावाद को आकार देता है। वही यह निर्धारित करता है कि लोग निवेश और संगठन निर्माण के इच्छुक हों। मैंने और विजय केलकर ने इन सवालों पर उपाय सुझाए थे जो नवंबर 2019 में पेंगुइन ऐलन लेन से 'इन सर्विस ऑफ द रिपब्लिक: द आर्ट ऐंड साइंस ऑफ इकनॉमिक पॉलिसी' के नाम से प्रकाशित हुए।

बीते दो वर्षों से प्रौद्योगिकी कंपनियों की सफलता को लेकर काफी उत्साह है। परंतु हमें इस विशाल आकार को देखते हुए अपने उत्साह को नियंत्रित करना होगा। सुई को इस विशाल अर्थव्यवस्था की गति और दिशा को बदलना आसान नहीं है। करीब तीन लाख करोड़ डॉलर सालाना की जीडीपी में एक फीसदी हिस्सा होता है 30 अरब डॉलर प्रति वर्ष। इसी प्रकार अगर 40 करोड़ की कुल श्रम शक्ति और 80 करोड़ बेरोजगार लोगों से तुलना की जाए तो 10 लाख नए रोजगार कोई खास मायने नहीं रखते। सूचना प्रौद्योगिकी देश का सबसे बड़ा उद्योग है और लोकरुचि की तमाम कथाएं वहां से उपजती हैं। परंतु वहां इतना विकास नहीं हो रहा है जो अर्थव्यवस्था की प्रमुख समस्याओं की भरपाई कर सके।

समस्या का एक हिस्सा बुनियादी ढांचे से संबद्ध है। 2021 में रुपये के संदर्भ में देखें तो 2011-12 में निजी 'क्रियान्वयनाधीन परियोजनाएं' करीब 36 लाख करोड़ रुपये की थीं जो अब 10 लाख करोड़ रुपये की हो चुकी हैं। निजी 'क्रियान्वयनाधीन निजी निवेश परियोजनाओं' में 26 लाख करोड़ रुपये की गिरावट बुनियादी ढांचे में समस्या की वजह से है। निजी निवेश में आई गिरावट का आधा हिस्सा बुनियादी ढांचा क्षेत्र में है तथा शेष आधा अन्य हिस्सों में। बुनियादी ढांचा क्षेत्र पर सावधानी से नजर डालें तो पता चलता है कि सरकारी बुनियादी परियोजनाओं में विस्तार ने क्षतिपूर्ति की है। सन 2011 से 2018 तक कुल 'क्रियान्वयनाधीन' बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का मूल्य करीब 70 लाख करोड़ रुपये था और निजी निवेश में आ रही कमी की भरपाई सरकारी निवेश से की जा रही थी। परंतु सरकारी बुनियादी ढांचा निवेश पर जोर देने की नीति में भी अपरिहार्य रूप से कुछ दिक्कतें हैं। सरकार की राजकोषीय क्षमता और परियोजना प्रबंधन सीमित हैं। ऐसे में सरकारी नेतृत्व वाली नीतियों के लिए सीमित गुंजाइश है। सन 2018 के बाद से सरकार की 'क्रियान्वयनाधीन परियोजनाओं' का मूल्य वास्तविक संदर्भ में 7 लाख करोड़ रुपये तक कम हुआ है। परिणामस्वरूप, कुल 'क्रियान्वयनाधीन परियोजनाएं' 2018 के 72 लाख करोड़ रुपये से कम होकर आज 63 लाख करोड़ रुपये रह गई हैं। 2018 के बाद बुनियादी निवेश में यह बदलाव और अर्थव्यवस्था के मांग क्षेत्र के लिए उसके परिणामों को व्यापक रूप से चिह्नित नहीं किया गया है।

दोबारा निजी 'क्रियान्वयनाधीन परियोजनाओं' की बात करें तो ताजा आंकड़ा बताता है कि 38 लाख करोड़ रुपये के निचले स्तर से सुधार हुआ और अप्रैल-जून 2021 तिमाही में यह बढ़कर 39.58 लाख करोड़ रुपये हुआ। यहां तीन बातें नजर आती हैं।

1. महामारी में कुछ कंपनियों को भारी अनिश्चितता का सामना करना पड़ा, उनके पास प्रबंधन में बहुत अधिक गुंजाइश नहीं रह गई थी और उन्होंने निवेश की गतिविधियों को स्थगित कर दिया। सन 2021 तक अनिश्चितता में कमी आई और कंपनियां दोबारा सामान्य निवेश की दिशा में बढऩे लगीं।

2. विकसित देशों में टीकाकरण ने गति पकड़ी। विकासशील देशों ने राजकोषीय नीति की मदद से अपनी अर्थव्यवस्था को गति देने की ठानी। भारत के निर्यात में तेजी आई। चीन के राष्ट्रवाद ने इसमें मदद की। दुनिया के कई देशों ने वहां से अपना कारोबार भारत स्थानांतरित किया। कई भारतीय कंपनियों ने निर्यात या उससे संबद्ध गतिविधियों पर जोर दिया और निर्यात में तेजी का लाभ उठाया। इन घटनाओं के जरिये निर्यात क्षेत्र में कई कंपनियां निवेश कर रही हैं।

3. आखिरकार, महामारी में खपत का रुझान बदला। कुछ उद्योगों मसलन वाणिज्यिक अचल संपत्ति का प्रदर्शन खराब रहा लेकिन कुछ उद्योग मसलन ब्रॉडबैंड दूरसंचार ने बेहतरी दर्ज की। अनुकूल उद्योगों ने उच्च वृद्धि हासिल की और अब वे दोबारा निवेश कर रहे हैं।

बात करें तो करीब दो लाख करोड़ रुपये का बदलाव वास्तव में बहुत अधिक नहीं है। ताजा आंकड़े अगर बदलाव लाते हैं तो वे महत्त्वपूर्ण होंगे। जुलाई-अगस्त और सितंबर 2021 के आंकड़े 1 अक्टूबर को जारी किए जाएंगे। हमें उन पर नजर रखनी चाहिए। माना जा सकता है कि 43 लाख करोड़ रुपये की तेजी गत दशक औसत वर्ष की गिरावट की भरपाई कर देगी।

निजी निवेश में सुधार से वित्तीय, मशविरा, शोध, विनिर्माण और पूंजीगत वस्तु उद्योग के लिए मांग में सुधार होता है। इन सभी उद्योगों को बीते दशक में कठिनाई का सामना करना पड़ा। अब उनकी तकदीर बदल सकती है।

UP News: छोटे शहरों में भी अब निजी निवेश से बनेगी अत्याधुनिक टाउनशिप, योगी सरकार लागू करने जा रही है नई पालिसी

UP Latest News उत्तर प्रदेश आवास एवं शहरी नियोजन विभाग द्वारा तैयार की गई न्यू टाउनशिप नीति 2022 के तहत विकासकर्ताओं को तमाम सहूलियतें दी जाएंगी ताकि ज्यादा से ज्यादा निवेश के जरिये छोटे शहरों तक में अत्याधुनिक टाउनशिप विकसित हो।

UP News: लखनऊ [अजय जायसवाल]। उत्तर प्रदेश में निजी निवेश के जरिए अब छोटे शहरों में भी अत्याधुनिक टाउनशिप विकसित किए जा सकेंगे। न्यूनतम 12.5 एकड़ भूमि पर भी टाउनशिप विकसित करने के लिए राज्य सरकार विकासकर्ताओं को तमाम सहूलियतें देगी।

टाउनशिप के लिए जमीन खरीदने पर स्टाम्प ड्यूटी से छूट मिलेगी। ग्राम समाज व एससी-एसटी की भूमि के लिए शासन के बजाय मंडलायुक्त के स्तर से ही मंजूरी देने की व्यवस्था की जाएगी। ऐसे में जहां तेजी से टाउनशिप विकसित हो सकेगी, वहीं मध्यम व निम्न वर्गों के परिवार भी वाजिब दाम पर सभी सुविधाओं वाला फ्लैट खरीद सकेंगे।

दरअसल, पहले हाइटेक और फिर इंटीग्रेटेड टाउनशिप नीति के अनुरूप ही राज्य में निजी निवेश के जरिये आधुनिक टाउनशिप विकसित किए जा रहे हैं। वर्ष 2005 में पहले-पहल लागू इन नीतियों से उम्मीद के मुताबिक निजी निवेश के जरिये राज्य में टाउनशिप विकसित करने के लिए विकासकर्ताओं ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। ऐसे में योगी सरकार न्यू टाउनशिप नीति 2022 को लागू करने जा रही है।

प्रस्तावित नीति को जल्द ही अंतिम रूप देकर लागू किया जाएगा। आवास एवं शहरी नियोजन विभाग द्वारा तैयार की गई नई नीति के तहत विकासकर्ताओं को तमाम सहूलियतें दी जाएंगी ताकि ज्यादा से ज्यादा निवेश के जरिये छोटे शहरों तक में अत्याधुनिक टाउनशिप विकसित हो।

अरुण के विभिन्न ठिकानों पर छापेमारी के दौरान एक करोड़ रुपये और नकद बरामद किए गए हैं।

इंटीग्रेटेड टाउनशिप के लिए जहां न्यूनतम 25 एकड़ भूमि जरूरी थी, वहीं प्रस्ताविक नई नीति में दो लाख तक की आबादी वाले शहरों में 12.50 एकड़ पर ही टाउनशिप विकसित की जा सकेगी। भूमि खरीदने पर 50 प्रतिशत स्टांप ड्यूटी में छूट भी दी जाएगी।

टाउनशिप में भू-उपभोग परिवर्तन, ग्राम समाज की भूमि होने पर शासन से मंजूरी मिलने का इंतजार नहीं करना होगा। मंडलायुक्त के स्तर से ही 60 दिन में अनिवार्य रूप से मंजूरी मिल जाएगी। इसी तरह एससी-एसटी की भूमि के लिए डीएम की अनुमति की आवश्यकता भी नहीं रहेगी। 20 प्रतिशत तक कृषि भूमि होने पर भी टाउनशिप को मंजूरी मिलने में कोई दिक्कत नहीं आएगी।

Lucknow: सदन में सपा विधायकों का आरोप पुलिस ने वोट डालने से रोका

जब तक टाउनशिप नगरीय निकाय को ट्रांसफर नहीं होगी, तब तक उसमें रहने वालों से हाउसटैक्स व वाटरटैक्स नहीं वसूला जाएगा। न्यूनतम 24 मीटर की सड़क पर ही टाउनशिप विकसित की जा सकेगी। विकासकर्ताओं को टाउनशिप में मानकों के मुताबिक सभी जनसुविधाओं को विकसित करना होगा। विकासकर्ता को योजना में कुल फ्लैट का न्यूनतम 10-10 फीसद ईडब्ल्यूएस व एलआइजी श्रेणी के भी फ्लैट बनाने होंगे।

निजी निवेश से ही आर्थिक पुनरुद्धार को मिलेगी रफ्तारः दास

मुंबई, 16 नवंबर (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मंगलवार को कहा कि महामारी की मार झेल चुकी अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार की राह पर मजबूती से आगे बढ़ने से निजी निवेश भी बढ़ेगा, जिसके लिए बैंकों को तैयार रहना होगा। दास ने यहां भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि टीकाकरण की रफ्तार तेज होने और कोरोना संक्रमण में गिरावट से आर्थिक बहाली उम्मीद से ज्यादा तेज रही है। इससे संक्रमितों के इलाज पर आने वाला खर्च कम होने के साथ उपभोक्ता धारणा भी सुधरी है और त्योहारी मौसम में

दास ने यहां भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि टीकाकरण की रफ्तार तेज होने और कोरोना संक्रमण में गिरावट से आर्थिक बहाली उम्मीद से ज्यादा तेज रही है। इससे संक्रमितों के इलाज पर आने वाला खर्च कम होने के साथ उपभोक्ता धारणा भी सुधरी है और त्योहारी मौसम में यह नजर भी आया।

उन्होंने कहा कि महामारी के बाद के दौर में अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे अपने पैरों पर फिर से खड़ी हो रही है। प्रमुख आर्थिक संकेतक इसकी पुष्टि कर रहे हैं कि आर्थिक पुनरुद्धार मजबूती पकड़ रहा है।

दास ने कहा कि अर्थव्यवस्था को अभी अपनी जमीन मजबूत करने के लिए लंबा सफर तय करना है। हालांकि, अब भी निजी खपत और निजी निवेश के बीच का फासला कोविड-पूर्व के स्तर से ज्यादा है।

गवर्नर ने निजी खपत को समग्र आर्थिक वृद्धि की रीढ़ बताते हुए कहा कि कुल मांग में इसका हिस्सा सबसे ज्यादा होता है लिहाजा समावेशी, टिकाऊ एवं संतुलित वृद्धि के लिए यह बेहद अहम है।

उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था को पर्याप्त तीव्र रफ्तार से बढ़ने के लिए निजी पूंजी का निवेश बढ़ना जरूरी है। दास ने कहा कि निवेश का माहौल सुधरने पर बैंकों को भी निजी क्षेत्र को पूंजी मुहैया कराने के लिए तैयार रहना होगा। केंद्रीय बैंक ने अगले वित्त वर्ष से निवेश चक्र में तेजी आने की उम्मीद जताई है।

वर्ष-2013 से ही अर्थव्यवस्था में निजी पूंजी की आवक कम रही है। कई जानकारों का मानना है कि अगले वित्त वर्ष के मध्य से निजी निवेश में फिर से तेजी आ सकती है।

दास ने बैंकों के बही खातों के बेहतर होने का जिक्र करते हुए कहा कि बैंकों का कुल फंसा कर्ज जुलाई-सितंबर की तिमाही में पहली तिमाही की तुलना में कम हुआ है। उन्होंने बैंकों से अपनी पूंजी प्रबंधन प्रक्रिया को बेहतर करने को भी कहा।

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