हेजिंग लागत

आर्बिट्रेज और हेजिंग के बीच अंतर: आर्बिट्रेज बनाम हेजिंग की तुलना
आर्बिट्राज आर्बिट्रेज वह जगह है जहां एक व्यापारी एक परिसंपत्ति की खरीद और परिसंपत्ति की कीमत के स्तर में मतभेदों से लाभ प्राप्त करने की उम्मीद के साथ एक संपत्ति खरीद और बेच देगा बेच दिया। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि परिसंपत्तियों को अलग-अलग मार्केट स्थानों पर खरीदा और बेच दिया जाता है; जो कीमत के स्तर में अंतर के लिए कारण है। विभिन्न बाजारों में मूल्य स्तरों में अंतर क्यों है इसका कारण यह है कि बाज़ार की अक्षमताएं; जहां एक बाजार स्थान की स्थितियों के कारण कीमतों में बदलाव आया है, क्योंकि इस जानकारी ने अभी तक अन्य बाजार स्थान पर प्रभाव नहीं डाला है, कीमत का स्तर अलग रहता है। एक मार्केट लाभ लेने की तलाश में एक मार्केट इन मार्केट अदलाबिकों का उपयोग केवल एक बाजार से सस्ती कीमत पर परिसंपत्ति की खरीद करके और एक उच्च मूल्य पर इसे बेची जाने के बाद एक मध्यस्थ लाभ बनाने के लिए कर सकता है।
हेज़िंग एक संभावित रणनीति को कम करने के लिए व्यापारियों द्वारा उपयोग की जाने वाली युक्ति है, और इस प्रकार लागत हेजिंग लागत में, आंदोलन में होने वाले बदलावों से होने वाली आय में कमी। एक निवेशक एक निवेश में प्रवेश करके संभव घाटे के खिलाफ बचाव करेगा जिससे निवेशक किसी भी हानि को ऑफसेट करने की स्थिति में होने की अनुमति दे सकता है, जिस स्थिति में इससे भी बदतर होता है यह एक सुरक्षा उपाय की तरह काम करता है, या भारी नुकसान के खिलाफ बीमा कवरेज हेजिंग वित्तीय साधनों जैसे स्टॉक, वायदा, विकल्प, स्वैप और आगे के रूप में किया जा सकता है, और आमतौर पर छोटी बिक्री और लंबी अवधि के लिए जटिल निवेश रणनीतियों को रोजगार प्रदान करता है। उदाहरण के साथ हेजिंग को बेहतर समझा जा सकता है
एयरलाइंस लगातार अपने ऑपरेशन चलाने के लिए ईंधन खरीदते हैं। हालांकि, ईंधन की कीमत बेहद हेजिंग लागत अस्थिर है और इसलिए ज्यादातर एयरलाइंस इस खतरे की रक्षा करने की कोशिश करते हैं जो एक हेज पर ले जाती है जो अधिकतम टोपी पर ईंधन की कीमत निर्धारित करता है। यह वित्तीय साधनों जैसे कि स्वैप या विकल्प के माध्यम से किया जा सकता है
आर्बिट्रेज बनाम हेजिंग
आर्बिट्रेज और हेजिंग दोनों तकनीकों का उपयोग किया जाता है जो व्यापारियों द्वारा उपयोग की जाती हैं जो एक अस्थिर वित्तीय वातावरण में कार्य करते हैंहालांकि, ये तकनीक एक-दूसरे से काफी भिन्न हैं और विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाती हैं। आर्बिट्रेज का उपयोग आम तौर पर एक व्यापारी द्वारा किया जाता है जो बाजार की अक्षमताओं के माध्यम से बड़े मुनाफे का प्रयास करता है। दूसरी ओर, हेजिंग का उपयोग किसी भी संभावित हानि से बचाने के लिए व्यापारियों द्वारा बीमा पॉलिसी के रूप में किया जाता है। आर्बिट्रेज और हेजिंग एक-दूसरे के समान हैं क्योंकि इन दोनों में निवेशकों को बाजार में आंदोलनों की आशा करने की आवश्यकता होती है और उन आंदोलनों से लाभ उठाने के लिए वित्तीय साधनों का उपयोग किया जाता है।
सारांश:
• आज के बाजार में ट्रेडर्स निरंतर उच्च स्तर की रिटर्न प्राप्त करने के लिए विभिन्न रणनीतियों का उपयोग करते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए कि जोखिम के स्तर का कम से कम होना कम है आर्बिट्रेज और हेजिंग दो ऐसे उपाय हैं, जो उद्देश्य के संदर्भ में एक दूसरे से काफी भिन्न हैं जिसके लिए वे उपयोग किए जाते हैं।
• आर्बिट्रेज यह है कि एक व्यापारी एक साथ संपत्ति खरीदने और बेचने वाली परिसंपत्ति की कीमत के स्तर में मतभेदों से लाभ अर्जित करने की उम्मीद के साथ एक संपत्ति खरीद और बेच देगा।
• हेजिंग एक खतरनाक जोखिम को कम करने के लिए व्यापारियों द्वारा उपयोग की जाने वाली युक्ति है, और इस प्रकार मूल्य हेजिंग लागत स्तर में, आंदोलन में बदलाव के परिणामस्वरूप आय में कमी।
आर्बिट्रेज और सट्टा के बीच का अंतर: आर्बिट्रेज बनाम सट्टा की तुलना और मतभेद हाइलाइट किए गए
हेजिंग और फॉरवर्ड अनुबंध के बीच का अंतर | हेजिंग बनाम अग्रेषित अनुबंध
हेजिंग और फॉरवर्ड अनुबंध के बीच क्या अंतर है? हेजिंग एक तकनीक है जिसका इस्तेमाल वित्तीय संपत्ति के जोखिम को कम करने के लिए किया जाता है; अग्रेषित अनुबंध एक अनुबंध
हेजिंग और अटकलों के बीच अंतर (तुलना चार्ट के साथ)
हेजिंग और अटकलों के बीच कुछ अंतर हैं, जो इस लेख में संकलित हैं। पहला हेजिंग जोखिम को नियंत्रित करने या समाप्त करने का एक साधन है जबकि सट्टा जोखिम पर निर्भर करता है, अच्छे रिटर्न की उम्मीद में।
Lowering: हिंदी अनुवाद, अर्थ, समानार्थक शब्द, विलोम, उच्चारण, उदाहरण वाक्य, प्रतिलेखन, परिभाषा, वाक्यांश
american |ˈloʊr̩ɪŋ|
british |ˈlaʊərɪŋ|
वेरिएंट
समानार्थी
शब्द के साथ वाक्य «lowering»
वाक्यांश
- instead of lowering - कम करने के बजाय
- slow lowering operation - धीमी गति से कम करने वाला ऑपरेशन
- hoisting lowering - उत्थापन कम करना
- inadvertent lowering - अनजाने में कम करना
- gradual lowering - धीरे-धीरे कम करना
- further lowering - और कम करना
- while lowering - कम करते समय
- lowering temperature - तापमान कम करना
- lowering the bar - बार कम करना
- lowering tax rates - कर दरों में कमी
- lowering the age of criminal responsibility - आपराधिक जिम्मेदारी की उम्र कम करना
- lowering the boom - उछाल को कम करना
- lowering springs - कम करने वाले झरने
- lowering of loads - भार कम करना
- lowering operation - लोअरिंग ऑपरेशन
- lowering of barriers - बाधाओं को कम करना
- lowering movement - आंदोलन कम करना
- lowering distance - कम दूरी
- lowering fares - किराया कम करना
- lowering of interest rate - ब्याज दर में कमी
- lowering the flaps - फ्लैप कम करना
- lowering the immune - प्रतिरक्षा हेजिंग लागत को कम करना
- lowering of the water level - जल स्तर का कम होना
- lowering of the peg - खूंटी का कम होना
- lowering price - कम कीमत
- lowering of standards - मानकों को कम करना
- lowering of horizon - क्षितिज का कम होना
- lowering loads - भार कम करना
- lowering of pressure - दबाव कम करना
- lowering and raising - कम करना और उठाना
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खेती में मशीनीकरण का अव्यावहारिक पक्ष
भारत में खेती की स्थिति कमाल की है। राजनीति में इसका जितना ऊँचा स्थान है, नीति-निर्माण में इसे उतना ही नजरअंदाज किया गया है। आजीविका के लिहाज से यह जितनी व्यापक है, अर्थव्यवस्था में योगदान के लिहाज से इसका स्थान उतना ही गौण है। इस विरोधाभासी स्थिति का ही नतीजा है कि किसान से करीबी का दावा करने वाले नेताओं और मंत्रियों से भरे इस देश में आजादी के 70 साल बाद भी जब खेती का जिक्र आता है, तब किसानों की आत्महत्या सबसे बड़ा मुद्दा बन जाती है। दरअसल, इस विरोधाभास की कहानी आजादी के तुरंत बाद ही शुरू हो गई थी। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में उस समय उद्योगों को आधुनिक भारत के मंदिर करार दिया था, जब देश की तीन-चौथाई से ज्यादा आबादी आजीविका के लिये खेती पर ही निर्भर थी।
यह महज एक जुमला नहीं था, बल्कि आने वाले दशकों में भारत की सरकारों के नीतिगत फोकस का एक स्टेटमेंट था। नतीजा हुआ कि किसानों के बेटों से भरी सरकारों में किसान कभी सरकारी नीतियों के केंद्र में नहीं आ सका। मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने, मॉनसून पर पूरी तरह आश्रित भारतीय खेतों तक पानी पहुँचाने, किसानों को उपज का सही भाव दिलाने, प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में किसानों को बर्बाद होने से बचाने, किसानों को उत्तम गुणवत्ता के बीज उपलब्ध करवाने, उन तक कृषि क्षेत्र की आधुनिकतम हेजिंग लागत शोध और जानकारियाँ पहुँचाने जैसे मूलभूत विषय न तो नीति-निर्माताओं की प्राथमिकता सूची में जगह पा सके और न ही देश की इंटेलिजेंसियों के बौद्धिक विचार-विर्मश का हिस्सा बन सके।
यह स्थिति दो तरह से देश के लिये बेहद नुकसानदेह रही। पहली की र्चचा तो गाहे-बगाहे हम करते रहते हैं कि जब देश में आजादी के केवल ढाई दशकों के भीतर भीषण अन्न संकट आया, जिसके कारण देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को ‘जय जवान-जय किसान’ के नारे के साथ हरित क्रांति की शुरुआत करनी पड़ी। लेकिन इसका दूसरा नतीजा यह हुआ कि खेती और इसलिए पूरा ग्रामीण भारत विकास की दौड़ में पिछड़ गया। शहर विकास और रोजगार का केंद्र बन गए और गाँवों से शहरों की ओर पलायन शुरू हो गया। गाँव और खेती गरीबी का पर्याय बन गए। बहरहाल, हरित क्रांति की थोड़ी चर्चा कर लेते हैं। इसमें कोई दो मत नहीं कि हरित क्रांति देश की अन्न सुरक्षा के लिहाज से मील का पत्थर साबित हुई।
बुनियादी सोच में दोष
भारत ने अनाज के मामले में आत्मनिर्भर होने की दिशा में बड़ी छलांग लगाई। लेकिन हरित क्रांति की नींव में पड़ी सोच ने एक भयानक वातावरण को जन्म दिया। यह सोच थी उपभोग केंद्रित व्यवस्था निर्माण की। हमने खेती को केवल एक माध्यम यानी रिसोर्स के तौर पर चुना। माध्यम देश की भूख मिटाने का, माध्यम विदेशी मुद्रा बचाने का, माध्यम अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भरता पाने का। और इस सोच के कारण ही खेत, मिट्टी, पानी और किसान, इस सबके दोहन से अधिकतम फायदे की प्रवृत्ति ने जन्म लिया। इन सबमें खेती, मिट्टी, किसान की भलाई और उन तमाम मुद्दों को कहीं जगह नहीं मिली, जिनका ऊपर जिक्र किया गया है।
हरित क्रांति के बाद ज्यादा उत्पादन खेती का मूल मंत्र हो गया और खेती पूरी तरह रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग पर निर्भर हो गई। हालाँकि बीजों पर अनुसंधान भी हुए और ज्यादा पैदावार देने वाले उन्नत किस्म के बीज आम किसानों तक पहुँचे लेकिन उनमें भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बोलबाला होने से कुल मिलाकर खेती की लागत लगातार बढ़ती रही। और फिर आई मशीनों की बारी। मिट्टी तैयार करने से लेकर, कुड़ाई, गुड़ाई, हेजिंग लागत बुवाई और कटाई तक में बड़ी-बड़ी मशीनों के इस्तेमाल को खेती में सफलता का रामबाण बताया गया और उसी लिहाज से बैंक ऋण की नीतियाँ बनाई गई। हालाँकि इस पूरी कवायद में इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया गया कि देश के 90 प्रतिशत से ज्यादा किसान छोटे या सीमांत किसान हैं, जिनके खेतों की जोत 5 एकड़ से भी कम है। इन किसानों के लिये बड़ी मशीनों का इस्तेमाल न केवल ज्यादा खर्चीला है, बल्कि अव्यावहारिक भी।
किसान खाद, कीटनाशक, महँगे बीजों और बड़ी मशीनों के चक्कर में कर्जदार बनता गया। खेती की लागत पहुँच गई आसमान पर, लेकिन कृषि उपज की सही कीमत दिलाने के मोर्चे पर कोई काम नहीं हुआ। लागत और आमदनी का अंतर कुछ ऐसा बढ़ा कि उसके नतीजे लाखों किसानों की खुदकुशी के तौर पर सामने आई है।
तो सवाल यह है कि इन भयानक परिस्थितियों का समाधान क्या है? समाधान ढूंढने के लिये पहले तो खेती को देखने का नजरिया बदलना होगा। खेती और किसान दूसरों की सेवा में लगे साधन नहीं हैं। ये जिंदा इकाई हैं, जो पारिस्थितिक संतुलन और मानव अस्तित्व के लिए अनिवार्य हैं। इसलिए इन्हें स्वस्थ और सुखी रखने की सोच से शुरुआत करनी होगी। खेती स्वस्थ तभी रहेगी जब मिट्टी स्वस्थ होगी, पानी स्वस्थ होगा और किसान सुखी तभी रहेगा जब एक ओर तो उसकी खेती की लागत कम होगी और दूसरी ओर उसे उसकी उपज का सही भाव मिलेगा। मृदा स्वास्थ्य, ऑर्गेनिक खेती, खाद और कीटनाशकों का तार्किक प्रयोग जैसे कदम खेती को स्वस्थ रखने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण हैं। वहीं दूसरी ओर, छोटे किसानों की आमदनी बढ़ाने में एकीकृत खेती जैसी पद्धतियाँ अहम हैं। बाजार सुधारों के लिहाज से नरेन्द्र मोदी सरकार की ओर से ई-नाम यानी राष्ट्रीय कृषि बाजार की स्थापना का जिक्र होना चाहिए जो हालाँकि बहुत ही कठिन और लंबी प्रक्रिया है, लेकिन हेजिंग लागत यदि इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया जा सका तो यह किसानों को उनकी उपज का अधिकतम भाव दिलाने में युगांतकारी कदम साबित हो सकती है।
कर्नाटक के एकीकृत बाजार प्लेटफॉर्म (यूएमपी) ने इसकी सफलता को पहले ही साबित कर दिया है। सरकार कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) कानून, 2003 में भी सुधार हेजिंग लागत लाने जा रही है, और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग मॉडल एक्ट भी जल्दी ही आने वाला है। ये सारे कदम किसानों को उनकी उपज का ज्यादा भाव दिलाने पर केंद्रित हैं। इसके अलावा, किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) का निर्माण और उनके माध्यम से सामूहिक खरीद-बिक्री भी एक तरीका है, जिससे किसानों की किस्मत बदली जा सकती है। उदयपुर के नजदीक जहाँ राजीविका के तहत एफपीओ बड़ी मशीनों की खरीद कर छोटे किसानों को सस्ती दरों पर इसे उपलब्ध करवा रही है, वहीं बिहार के पूर्णिया में आरण्यक एफपीओ वायदा बाजारों में हेजिंग के जरिए सदस्य किसानों को मक्का की 30-40 प्रतिशत ज्यादा कीमत दिलाने में सफल रहा है। इन तरीकों से उत्पादन में जो बढ़ोतरी होगी, उसमें भारतीय कृषि और किसानों की समृद्धि होगी, शोषण नहीं।
ब्रिक्स का एनडीबी बैंक अगले साल दो गुना ऋण मंजूर करेगा: केवी कामत
बैंक ने अभी पिछले साल ही परिचालन शुरू किया है और इस साल अब तक 9.11 करोड़ डॉलर के ऋण मंजूर कर चुका है।
एनडीबी के अध्यक्ष के वी कामत। (फाइल फ़ोटो-रॉयटर्स)
ब्रिक्स देशों द्वारा स्थापित नव विकास बैंक (एनडीबी) की 2017 में अपनी ऋण प्रतिबद्धताएं दोगुनी कर 2.5 अरब डॉलर करने की योजना है। एनडीबी के अध्यक्ष के वी कामत ने रविवार (16 अक्टूबर) को यह जानकारी दी। यह नया बैंक ढांचागत परियोजनाओं के लिए वित्तीय समर्थन उपलब्ध कराएगा। कामत ने यहां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के अवसर पर आयोजित ब्रिक्स व्यापार परिषद में कहा, ‘हम अगले साल वृद्धि के लिए 2.5 अरब डॉलर के ऋण देने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं और हमारा मानना है कि यह मुख्य रूप से स्वस्थ्य व हरित बुनियादी ढांचे के विकास के लिए होगा।’
उन्होंने कहा कि बैंक ने अभी पिछले साल ही परिचालन शुरू किया है और इस साल अब तक 9.11 करोड़ डॉलर के ऋण मंजूर कर चुका है। उम्मीद है हेजिंग लागत कि 2016 में यह राशि एक अरब डॉलर तक पहुंच जाएगी। अपनी प्रतिबद्धताओं व वास्तविक उधारी को ध्यान में रखते हुए एनडीबी ने अगले साल विभिन्न स्रोतों से 1.5 अरब डालर जुटाने का लक्ष्य रखा है। लंबे समय तक आईसीआईसीआई बैंक से जुड़े रहे प्रमुख बैंकर कामत ने कहा कि एनडीबी सदस्य देशों के लिए कर्ज की लागत कम करना चाहेगा और इसके लिए स्थानीय मुद्रा में उधार देने पर जोर देगा जिसमें विनिमय दर में उतार चढ़ाव से बचाव के लिए प्रतिरक्षात्मक वैकल्पिक अनुबंध (हेजिंग) करने की जरूरत नहीं होती।
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