विदेशी मुद्रा व्यापार का परिचय

बाजार अर्थव्यवस्था क्या है?

बाजार अर्थव्यवस्था क्या है?

परिभाषा बाजार अर्थव्यवस्था

सामाजिक विज्ञान जो उत्पादों और सेवाओं के उत्पादन, विनिमय और खपत की प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए जिम्मेदार है, अर्थव्यवस्था के रूप में जाना जाता है । इस शब्द का मूल ग्रीक भाषा में है और इसका अर्थ है "एक घर का प्रशासन"

इस विचार से निकलने वाली सबसे महत्वपूर्ण अवधारणाओं में से एक दक्षता है । यह कहा जाता है कि एक अर्थव्यवस्था का कुशलतापूर्वक उत्पादन करने के लिए, यह इस तथ्य पर आधारित होना चाहिए कि किसी व्यक्ति की भलाई को बेहतर बनाने के लिए , दूसरे व्यक्ति की स्थिति को खराब करना आवश्यक है, इस तरह से कि कम संभावनाओं वाले लोगों के पक्ष में और मुनाफे को कम करने के लिए हमेशा आवश्यक है। जो लोग अधिक।

यह महत्वपूर्ण है कि हमेशा निर्णय किए जाते हैं कि संतुलित उत्पादन की वकालत करें ; यह है कि, जो आवश्यक है, न तो कमी के लिए और न ही बहुतायत से निर्माण के लिए। खाते में लेते हुए, बदले में, उत्पादन में किन तरीकों का इस्तेमाल किया जाएगा, किन संसाधनों और किस तकनीक का विकास किया जाएगा और इससे प्राप्त होने वाली चीजों के आधार पर पूरी प्रक्रिया की लागत कितनी होगी।

निष्कर्ष निकालने के लिए, एक और अवधारणा का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है जो अवसर लागत है । यह शब्द उन वस्तुओं की मात्रा को संदर्भित करता है जिन्हें एक इकाई को दूसरे से अधिक उत्पादन करने के लिए उत्पादन रोकना आवश्यक है। यही है, यह उस अच्छे या सेवा के मूल्य को संदर्भित करता है जिसे दूसरे पर दांव लगाने के लिए माफ बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? किया जाता है।

बाजार अर्थव्यवस्था वह है जो यह सुनिश्चित करती है कि उत्पादन उसके सभी पहलुओं में काम करता है और किसी देश या क्षेत्र के कल्याण के साथ सहयोग करता है। यह अन्य समूहों के साथ व्यावसायिक संबंधों के संबंध में अच्छे निर्णय लेने की अनुमति देता है, जिसका उद्देश्य समाज के जीवन के उत्पादन और गुणवत्ता को बढ़ाता है।

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है Capitalist बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? Economy In Hindi

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है Capitalist Economy In Hindig in Hindi : पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसमें उत्पति के सभी साधनों पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व व नियंत्रण होता है तथा आर्थिक क्रियाओं का संचालन निजी हित व लाभ प्रेरणा के उद्देश्य से किया जाता है. सरकार के आर्थिक कामकाज के प्रबंध में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नही करती है.

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है Capitalist Economy In Hindi

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है Capitalist Economy In Hindi

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था कप स्वतंत्र बाजार अर्थ व्यवस्था, बाजार अर्थव्यवस्था एवं मुक्त अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है. विश्व में इस आर्थिक प्रणाली का उदय सन 1760 से 1820 के मध्य औद्योगिक क्रांति के समय हुआ.

आज विश्व के किसी भी देश में पूंजीवादी अपने विशुद्ध रूप में नही है. परन्तु आर्थिक गतिविधियों के संचालन व नियन्त्रण के आधार पर पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका (usa), जर्मनी, कनाडा, इटली, जापान, फ़्रांस ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में अर्थतंत्र पूंजीवादी अर्थव्यवस्था कहलाते है.

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है?

1776 में छपी प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ की किताब ‘द वेल्थ ऑफ नेशंस’ को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की मूल स्रोत कहा जाता हैं. स्काटिश अर्थाशास्त्री एडम स्मिथ को ही इस विचारधारा का जनक माना जाता हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो के प्रोसेफरों के साथ मिलकर स्मिथ ने एक विचार को जन्म दिया जो अमेरिका और यूरोपीय देशों में तेजी से लोकप्रिय हुआ.

यह पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का विचार था. यह वह दौर था जब पश्चिम के देशों में व्यापार आदि पर राज्य के हस्तक्षेप के खिलाफ आवाज उठा रहे थे. एडम स्मिथ के अनुसार आर्थिक विकास दर को ऊपर उठाने के लिए श्रम विभाजन जरूरी है साथ ही अर्थव्यवस्था को सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखा जाना चाहिए. उनके विचार में एक अर्थव्यवस्था तभी लोकहितकारी हो सकती है जब उसमें पर्याप्त प्रतिस्पर्धा का स्थान हो. अमेरिका की स्वतंत्रता के बाद देश की विकास नीति में इस अर्थशास्त्री के सुझावों को महत्व दिया गया.

वेल्थ ऑफ नेशन्स के प्रकाशन के बाद कई यूरोपीय देशों में यह विचार तेजी से लोकप्रिय हुआ और सन 1800 आते एक नई प्रकार की विचारधारा का चलन पश्चिम से हुआ जो पूंजीवादी अर्थव्यवस्था कहलाई. इस प्रणाली में उत्पादन क्या और कितना करना है तथा किन दरों पर इसे बेचना है इसका निर्धारण कोई सरकार या राज्य न करके स्वतंत्र बाजार प्रणाली करती हैं. जिसमें आपूर्ति और मांग के अनुरूप वस्तुओं के मूल्य निर्धारित होते हैं.

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पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं (Features of Capitalist Economy)

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के घटक जैसे भूमि, खानें, कारखाने, मशीनें आदि पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व होता है. इन साधनों के स्वामी अपनी इच्छानुसार इनका प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र होते है. व्यक्तियों की सम्पति रखने, उसे बढ़ाने व उसे प्रयोग करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है.

  • उपभोक्ताओं को चयन की स्वतंत्रता (Freedom of choice of consumers) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता प्रभुसता सम्पन्न होते है. अर्थात उपभोक्ता के खर्च व उसकी इच्छा के अनुरूप ही उत्पादक वस्तुओं का उत्पादन करते है. इसे ही उपभोक्ता की संप्रभुता कहते है. यह आर्थिक प्रणाली ,में उपभोक्ता अपनी आय को इच्छानुसार व्यय करने के लिए स्वतंत्र होता है. उपभोक्ता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त होने के कारण ही इस आर्थिक प्रणाली (economic system) में उपभोक्ता को बाजार बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? का राजा कहा जाता है.
  • उद्यम की स्वतंत्रता (Enterprise independence)– प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार किसी भी आर्थिक गतिविधि का संचालन कर सकता है. उत्पादन करने की तकनीक के चयन करने की, उद्योग स्थापित करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है. सरकार का कोई हस्तक्षेप नही होने के कारण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को स्वतंत्र उद्यम वाली अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है.
  • प्रतिस्पर्धा (Competition)– पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में विक्रेताओं के बिच अपने अपने उत्पाद तथा वस्तुओं को बेचने के लिए तथा क्रेताओं के बिच अपनी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए वस्तुओं को खरीदने के लिए प्रतियोगिता चलती रहती है. इससे बाजार में कुशलता बढ़ती है. विज्ञापन देना, उपहार देना, मूल्य में कमी कर देना आदि तरीके प्रतिस्पर्धा हेतु अपनाएँ जाते है.
  • निजी हित एवं लाभ का उद्देश्य (Purpose of personal interest and profit)-पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किसी भी कार्य का निर्णय अथवा किसी वस्तु का उत्पादन का निर्णय मुख्य रूप से लाभ की भावना के आधार पर ही लिया जाता है. अर्थात काम करने में क्या व कितना लाभ प्राप्त होग? इसी प्रकार उपभोक्ता भी वस्तुओं का उपयोग निजी हित के लिए करते है.
  • वर्ग संघर्ष (class struggle) – पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में समाज दो वर्गों में विभाजित हो जाता है. एक ओर साधन सम्पन्न वर्ग होता है. जो पूंजीपति कहलाता है. तथा दूसरी ओर साधन विहीन वर्ग होता है. जो श्रमिक कहलाता है. पूंजीपतियों में लाभ बढ़ाने का उद्देश्य व श्रमिकों के शोषण से बचने का उद्देश्य वर्ग संघर्ष को जन्म देते है.
  • आय की असमानता (Income inequality)- सम्पति के असमान वितरण के कारण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में गरीब व अमीर के बिच विषमता की खाई बढ़ती जाती है. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का विश्लेष्ण इस प्रकार कर सकते है.

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के गुण (advantages of capitalist economy)

  1. उत्पादन क्षमता व कुशलता का बढ़ना
  2. उपभोक्ताओं को अधिक संतुष्टि
  3. साधनों का अनुकूलतम प्रयोग
  4. तकनिकी विकास
  5. रहन सहन का स्तर ऊँचा होना
  6. आर्थिक स्वतंत्रता
  7. शोध, अनुसंधान का विकास

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के दोष (merits and demerits of capitalist economy)

  1. आय व सम्पति की विषमताएं
  2. क्षेत्रीय असमानताएं
  3. आर्थिक अस्थिरता
  4. एकाधिकारों का स्रजन
  5. उत्पाद्कीय संसाधनो का दुरूपयोग
  6. अमर्यादित उपभोग
  7. नैतिक मूल्यों में गिरावट

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का इतिहास (History of capitalist economy)

मिस्र, कार्थेज, रोम, बेबिलोनिया और यूनान में भी पूंजीवाद के पद चिह्न मिलते है. अथवा यूँ कहे कि जब से मानव संस्कृतियों का विकास आरम्भ हुआ तब से भिन्न भिन्न स्थानों पर इस विचारधारा का प्रभाव रहा, दास प्रथा जैसी परम्पराएं इस मॉडल के प्राचीन होने का साक्ष्य रही हैं.

वानिज्यवाद तथा सामन्तवाद के रूप में पूंजीवादी विचारधारा का सर्वाधिक प्रचार अठारवी शदी में यूरोप के देशो में हुआ. विश्व में औद्योगिक क्रांति के जन्म में पूजीवाद का बड़ा योगदान था. इसे Mass Production Capitalism भी कहा जाने लगा. वैसे तो संस्थागत रूप से सोलहवीं सदी में ही पूंजीवाद ने यूरोप में स्वयं को प्रस्तुत कर दिया था.

आर्थिक स्वतंत्रता का सर्वप्रथम उल्लेख एडम स्मिथ की द वेल्थ ऑफ नेशंस में लिया गया. हालांकि स्मिथ ने अपनी किताब में पूंजीवाद शब्द का प्रयोग नहीं किया था. ऐडम स्मिथ का यह व्यक्तिगत पूँजी और स्वतंत्र उद्योग का उदारवादी मत आधुनिक पूँजीवाद का मेरुदंड हैं.

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में यह मत प्रमुखता से रहा कि यदि आर्थिक व्यापार को नियंत्रण से मुक्त कर दिया जाए तो उत्पादन क्षमता को कई गुना तक बढाया जा सकता हैं. बीसवीं सदी के आरंभ में मैक्स वेबर ने इसे सही ढंग से परिभाषित कर सबके समक्ष रखा.

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शेयर बाजार की बढ़ती चमक: शेयर बाजार जुआघर नहीं, अर्थव्यवस्था की चाल को नापने का है आर्थिक बैरोमीटर

भारतीय शेयर बाजार का चमकीला परिदृश्य निवेशकों, उद्योग-कारोबार और सरकार के लिए लाभप्रद है

हम उम्मीद करें कि कोविड-19 से ध्वस्त देश के उद्योग-कारोबार सेक्टर को पुनर्जीवित करने में शेयर बाजार बहुत प्रभावी भूमिका निभाएगा। निवेशक शेयर बाजार का लाभ लेने के लिए तेजी से आगे बढ़ेंगे। इस समय शेयर बाजार के तेजी से आगे बढ़ने की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं।

[ डाॅ. जयंतीलाल भंडारी ]: इस समय दुनियाभर के विकासशील देशों के शेयर बाजारों की तस्वीर में भारतीय शेयर बाजार की स्थिति शानदार दिखाई दे रही है। भारतीय शेयर बाजार का चमकीला परिदृश्य निवेशकों, उद्योग-कारोबार और सरकार, तीनों के लिए लाभप्रद है। पिछले वर्ष 23 मार्च, 2020 को जो बांबे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 25,981 अंकों के साथ ढलान पर दिखाई दिया था, वह पांच अगस्त, 2021 को 54,717.24 अंकों के स्तर को छूने में सफल रहा। चालू वित्त वर्ष 2021-22 के पहले चार महीनों यानी अप्रैल से जुलाई में शेयर बाजार के निवेशकों ने 31 लाख बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? करोड़ रुपये की कमाई की है। इस समय शेयर बाजार में आइपीओ लाने की होड़ मची हुई है। आइपीओ में खुदरा निवेशकों की भागीदारी 25 फीसद बढ़ी है। पिछले वित्त वर्ष में 1.4 करोड़ से ज्यादा डीमैट खाते खुले हैं। देश में डीमैट खातों की संख्या 6.5 करोड़ से ज्यादा हो गई है। यह बात महत्वपूर्ण है कि शेयर बाजार में आई तेजी की वजह से दशक में पहली बार भारत की सूचीबद्ध कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से ज्यादा हो गया है। इस लिहाज से बाजार पूंजीकरण और जीडीपी का अनुपात 100 फीसद को पार कर गया है। अमेरिका, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन, हांगकांग, कनाडा, आस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैंड जैसे विकसित देशों में भी यह अनुपात 100 फीसद से अधिक है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपया। फाइल फोटो

शेयर बाजार के तेजी से आगे बढ़ने के कई कारण

देश में शेयर बाजार के तेजी से आगे बढ़ने के कई कारण दिखाई दे रहे हैं। निवेशक यह देख रहे हैं कि कोरोना की चुनौतियों के बीच वर्ष 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर आठ से नौ फीसद पहुंच सकती है। वहीं भारत समेत दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने बाजार में बड़ी मात्रा में पूंजी डाली है। ऐसे में इस समय ब्याज दरें ऐतिहासिक रूप से नीचे हैं। निवेशक यह भी देख रहे हैं कि करीब छह फीसद से अधिक के मुद्रा प्रसार के बीच फिक्स्ड डिपाजिट (एफडी) पर प्राप्त होने वाला लाभ शेयर बाजार के लाभ से कम हैं। अमेरिका के साथ भारत के अच्छे संबंधों की संभावनाओं से निवेशकों की धारणा को बल मिला है। भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति भरोसा मजबूत होने से विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार में ज्यादा पूंजी लगाने में खासी दिलचस्पी ले रहे हैं। वहीं चालू वित्त वर्ष के बजट में सरकार ने वृद्धि दर और राजस्व में बढ़ोतरी को लेकर जो एक बड़ा रणनीतिक कदम उठाया है, उससे भी शेयर बाजार को बड़ा प्रोत्साहन मिला है। दरअसल वित्त मंत्री ने बजट में प्रत्यक्ष करों और जीएसटी में 22 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान लगाया है। विनिवेश से प्राप्त होने वाली आय का लक्ष्य 1.75 लाख करोड़ रुपये रखा गया है। वित्त मंत्री ने राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 6.8 फीसद तक विस्तारित करने में कोई संकोच नहीं किया है।

निजीकरण को बढ़ावा

बजट में सरकार निजीकरण को बढ़ावा देने के साथ-साथ बीमा-बैंकिंग, विद्युत और कर सुधारों की डगर पर आगे बढ़ी है। इससे भी शेयर बाजार को गति मिली है। चालू वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, विनिर्माण तथा र्सिवस सेक्टर को भारी प्रोत्साहन शेयर बाजार के लिए लाभप्रद है। बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) की सीमा बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने से इस क्षेत्र को नई पूंजी प्राप्त करने और कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी। 20,000 करोड़ रुपये की शुरुआती पूंजी के साथ ढांचागत क्षेत्र पर केंद्रित नए डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूशन (डीएफआइ) की स्थापना अच्छा कदम है। टीडीएस नियम भी सरल बनाने की पहल की गई है। बजट में कारपोरेट बांड बाजार की मदद के लिए एक स्थायी संस्थागत ढांचा तैयार करने की कोशिश की गई है। बिजली वितरण क्षेत्र को उबारने के लिए बजट में 3,00,000 करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। वित्त मंत्री ने गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के बोझ से दबे सरकारी बैंकों के पुनर्पंूजीकरण के लिए 20 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। सरकार ने आइडीबीआइ बैंक के अलावा दो अन्य सार्वजनिक बैंकों और एक साधारण बीमा कंपनी के निजीकरण बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? का प्रस्ताव रखा है। बजट में लाभांश पर स्पष्टता सुनिश्चित की गई है। इससे पारदर्शिता बढ़ी है और निवेशक बाजार में धन लगाने के लिए आर्किषत हो रहे हैं। यद्यपि छोटे और ग्रामीण निवेशकों की दृष्टि से शेयर बाजार की प्रक्रिया को और सरल बनाया जाना जरूरी है। लोगों को यह समझाया जाना होगा कि शेयर बाजार कोई जुआघर नहीं है। यह तो देश की अर्थव्यवस्था की चाल को नापने का एक र्आिथक बैरोमीटर है।

शेयर बाजार के तेजी से आगे बढ़ने की संभावनाएं

नि:संदेह इस समय भारत में शेयर बाजार के तेजी से आगे बढ़ने की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं, लेकिन जिस तरह लंबे समय से सुस्त पड़ी हुई कंपनियों के शेयर की बिक्री कोविड-19 के बीच तेजी से बढ़ी है, उससे शेयर बाजार में जोखिम भी बढ़ गया है। इसका सबसे अधिक ध्यान रिटेल निवेशकों को रखना होगा। ऐसे में शेयर बाजार में हर कदम फूंक-फूंककर रखना जरूरी है। शेयर बाजार की ऊंचाई के साथ-साथ छोटे निवेशकों के हितों और उनकी पूंजी की सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाना जरूरी है। सरकार द्वारा शेयर और पूंजी बाजार को मजबूत बनाने की डगर पर आगे बढ़ने के लिए सेबी की भूमिका को और प्रभावी बनाया जाना होगा।

शेयर बाजार कोविड-19 से ध्वस्त कारोबार को पुनर्जीवित करने में निभाएगा प्रभावी भूमिका

हम उम्मीद करें कि कोविड-19 से ध्वस्त देश के उद्योग-कारोबार सेक्टर को पुनर्जीवित करने में शेयर बाजार बहुत प्रभावी भूमिका निभाएगा। निवेशक शेयर बाजार का लाभ लेने के लिए तेजी से आगे बढ़ेंगे। वहीं केंद्र सरकार भी चालू वित्त वर्ष 2021-22 में 1.75 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ेगी।

मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की एक विशेषता क्या है?

Explanation : मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की एक विशेषता उपभोक्ता संप्रभुता है। उपभोक्ता संप्रभुता मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की सुविधाओं का एक प्रमुख गुण है। यह माल एवं सेवाओं के ​उत्पादन को निर्धारिरत करने के लिए उपभोक्ता वरीयताओं के दावे को संदर्भित करता है। एक मुक्त बाजार व्यवस्था में, वास्तव में बाजार प्रदर्शन व्यवस्था के भीतर उपभोक्ताओं की विशिष्ट आवश्यकताओं के लिए उत्तरदायी है।
अर्थव्यवस्था Economy GK किसी भी परीक्षार्थी एवं प्रतिभागी के लिए सफलता पाने में अत्यधिक उपयोगी होता है। इससे संबंधित प्रश्न, एसएससी, यूपीएससी, बैंकिंग, डिफेंस, रेलवे बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? इत्यादि प्रमुख सरकारी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। इसलिए अगर आपका सामान्य ज्ञान अच्छा है तो आसानी से बहुत कम समय में ज्यादा प्रश्न हल कर सकते हैं और अच्छे अंक ला सकते है।. अगला सवाल पढ़े

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फ्रांस के अर्थशास्त्री गाय सोरमन का मानना है कि पिछले दो दशक के आर्थिक उदारीकरण से भारत के गरीबों में जिंदगी सुधारने की उम्मीद जगी है।

मुक्त अर्थव्यवस्था के कट्टर समर्थक माने जाने वाले प्रसिद्ध लेखक सोरमन को हालांकि इस बात का क्षोभ है कि उदारीकरण के बाद भारतीय अफसरशाही इसकी रफ्तार को कायम नहीं रख सकी। अफसरशाही ने इसके रास्ते में कई तरह की बाधाएं खड़ी कर दीं।

अपनी नई पुस्तक 'इकोनॉमिक्स डज नॉट लाई' को जारी करने के लिए सोरमन भारत आए हुए हैं। इस पुस्तक का प्रकाशन फुल सर्किल ने किया है। सोरमन ने कहा कि मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की सफलता के लिए कई तरह के संस्थागत सुधार एक के बाद एक किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि उदारीकरण ने भारत के लिए कई अच्छी चीजें की हैं।

सोरमन ने कहा कि इस देश में अफसरशाही आज भी पुराने भारत की है। यह पुराने से आधुनिक नहीं होने देना चाहती। कुछ ऐसा ही तकनीकी शिक्षा देने के मामले में है। इन आलोचनाओं की उदारीकरण के बाद भारत में भारी असमानता की स्थिति पैदा हो गई है, सोरमन ने कहा वह गरीबी को लेकर काफी संवदेनशील हैं। पर इस सवाल का जवाब फिर पुरानी प्रणाली में जाना नहीं है, बल्कि वर्तमान व्यवस्था में सुधार करना है।

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